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बुधवार, 3 जून 2020

अशोक बिंदु भईया : दैट इज....?! पार्ट 01

योग/सम्पूर्णता(all/अल) की कृति!
तीन स्तर-स्थूल, सूक्ष्म व कारण!
तीनों की आवश्यकताओं के लिए जीना ही कर्म/यज्ञ/प्रकृति अभियान!
किशोरावस्था हालांकि तूफानी अवस्था होती है।

हमारी शिक्षा की शुरुआत सन्तों के बीच शुरू हुई।
नर्सरी एजुकेशन में संतो के अतिरिक्त पूरनलाल गंगवार, टीकाराम गंगवार, हरिपाल सिंह आदि का योगदान रहा जोकि सरस्वती शिशु मंदिर योजना में आचार्य थे ।
सरस्वती शिशु मंदिर योजना में शिक्षा प्रारंभ के वक्त ठाकुर दास प्रजापति की समीपता में भी आए ।

आर्य समाज ,शांतिकुंज ,जय गुरुदेव संस्था ,निरंकारी समाज आदि के कार्यक्रमों में  सहभागिता बनी रहती थी।
श्री रामचंद्र मिशन, शाहजहांपुर से अभ्यासियों से  भी मैसेज आते रहते थे।


सन1983 ई0!

पाठ्यक्रम तथ्यों विशेष कर कबीर ,रहीम ,रैदास के दोहे ,गीता के श्लोक ,सुभाषितानि के श्लोक ,गौतम बुद्ध ,सम्राट अशोक ,चंद्रगुप्त मौर्य ,गुरु गोविंद सिंह व उनके पुत्र आदि से चिंतन मनन कल्पना सपना माध्यम अपना वैचारिक स्थल सजाती जा रहे थे ।

किशोरावस्था में प्रवेश करते ही समाज की अनेक धारणाएं जातिवाद ,मजहबवाद, धर्मस्थलवाद आदि अटपटी लगने लगी थी।

 प्रकृति ,पुस्तकें ,बच्चे .....ये  स्थितियों में ही हमारा वक्त गुजरता था ।

सारी कायनात में मैत्री मनोदशा थी ।
डर ,भ्रम आदि तो प्रकृति में थे जो मानव निर्मित व मानव के बीच थी ।
तीनों स्तरों- स्थूल, सूक्ष्म व  कारण के एहसास किसी ने आमंत्रित करना शुरू कर दिए थे ।

मूर्ति पूजा शुरुआत करने के साथ ही छूट चुकी थी सिर्फ दिखावा रह गया था ।
अंदर कुछ क्षण ऐसे आने लगे थे जोकि हमें आनंदित कर देते थे ।

वे आनंद की लहरें.... तरंगे.। स्पंदन ...!
परिवार ,पास पड़ोस, विद्यालय से कुछ मैसेज ऐसे ग्रहण होने शुरू हुए जो सहज ज्ञान में विपरीत है ।

ऊर्जा तो गतिमान है स्थिर भी है हालांकि ।
लेकिन हमारे लिए गतिमान ही थी कभी मूलाधार पर तो कभी माथे पर ।
परिवार ,समाज के भेद ,संकीर्णताएं ,विकार ,अशुद्धियों के प्रभाव में बे वे अहसास, स्पंदन ,कंपन .... जो निष्पक्ष हैं पक्ष या विपक्ष में होकर जीवन यात्रा उन्नति में बाधक होते रहे !
यहां पर महसूस हुआ विद्यार्थी जीवन के लिए महत्वपूर्ण है वातावरण,आवासीय शिक्षा व्यवस्था, कुछ समय के लिए समाज से दूर कुछ शिविर ....... फिर जाना विद्यार्थी जीवन आखिर ब्रह्मचर्य जीवन क्यों है? बाहरी ज्ञान बाहरी प्रकाश से ही नहीं अंदरूनी प्रकाश अंदरूनी ज्ञान से जुड़ना ही ब्रह्मचर्य है।
 योग प्रथम  आवश्यकता है विद्यार्थी जीवन की।
 आगे बढ़ते रहें .....मन  बिखरता भी रहा.... एकाग्र होने की कोशिश करते रहे !आध्यात्मिक चिंतन मनन भी होता रहा !




पिता श्री प्रेम राज वर्मा के नाना ठाकुरदास राय व मामा रेवती प्रसाद ,खजुरिया नवी राम बिलसंडा पीलीभीत, ताऊ कह्मारा पुवायां, फूफा जी पौरिया बिलसंडा, सक्सेना जी प्राचार्य एसएस कॉलेज शाहजहांपुर आदि  की सांसारिक मदद के साथ बाबूजी महाराज , आर्य समाज व  शांतिकुंज की प्रेरणा से आगे बढ़े ।
वैसे तो वे जब  बे 5 साल के थे तभी उनके पिताजी अर्थात हमारे बाबा मूलाराम मृत्यु हो गई थी ।गांव छोड़कर ही विकास करना मजबूरी बन चुकी थी ।ऐसे में हम सभी की परवरिश भी बड़ी प्रतिकूलताओं, दुर्गमताओं के बीच हुई। पिताजी के चाचा फतेह चंद की नीतियां व आचरण तामसी प्रवृतियां, षड्यंत्र कार्य थे ।


हमने जब सांसारिकता में होश संभाला तो हम उस वक्त खजुरिया नवी राम बिलसंडा में रह रहे थे। वहां भी जमीन जायदाद, तामसी प्रवृतियां ,व्यक्तियों ,आर्थिक समस्याओं आदि के चलते स्थिति संघर्ष मे थी । केंद्र में कांग्रेस की सरकार थी ।आपातकाल लागू था। पुलिस की मनमानी से भी आसपास लोग, रिश्तेदार आदि शिकार हो रहे थे । उस समय सरस्वती शिशु मंदिर योजना में आचार्य हरपाल सिंह जिन्होंने बाद में हरित क्रांति विद्या मंदिर बीसलपुर पीलीभीत की स्थापना की; उनका व उनके परिजनों का बड़ा सहयोग रहा ।पुरोहितबाद, जातिवाद, अनेक अंधविश्वासों से संघर्ष भी जारी रहा ।इसके लिए शुरुआती प्रेरणा मोहिउद्दीनपुर बण्डा में आर्य समाजी गतिविधियों से मिली जहां हमारी ननिहाल (रोशनलाल गंगवार, रवि गंगवार, अश्वनी गंगवार ) भी है ।

अप्रैल सन 1983 ईस्वी !
हम कक्षा 5 परीक्षा कार्यक्रम में व्यस्त थे।
 राजीव तिवारी ,प्रसून गुप्ता, राजेश गुप्ता, मनोज गंगवार, अनुभव सक्सेना ,आनंद सक्सेना ,धर्मेंद्र सक्सेना, राजेश शर्मा ,दीपक सिंह बिष्ट ,नीतू शर्मा ,अर्चना तिवारी ,उमा गंगवार आदि हमजोली या सहपाठी हमारे करीबी थे ।इस वक्त हम अपना एकांत ब्रह्मनाद( मेडिटेशन ),गीता अध्ययन ,ओम नमो भगवते वासुदेवाय जाप आदि में व्यतीत करने लगे थे ।इस वक्त हम संत परंपरा में लगे अनेक व्यक्तियों के संपर्क में थे।

 कक्षा 6:00 में आते आते हैं हमारी मित्र मंडली में सर्वेश सिंह कुशवाहा, दिनेश सिंह, रजनीश सिंह आदि भी जुड़ गए थे। संभलने - सवरने हेतु स्थितियां नाजुक थी। नेगेटिव ऊर्जा से साक्षात्कार ज्यादा होता था ।जिसका प्रभाव मन मस्तिष्क पर था ।लेकिन उसको काटते हुए हम आध्यात्मिक चिंतन में लग गए थे ।लेकिन सांसारिक आकर्षण, हमजोलीओ के आचरण ,परिवार की स्थिति आदि प्रभावित करने की कोशिश करते रहे। उस वक्त सांसारिक ख्याल सिर्फ मैत्री तक सीमित थे उस वक्त कोई ख्वाब मित्रता के सिवा नहीं था या फिर सत्संग....

अशोकबिन्दु भईया:दैट इज...?! पार्ट02

किशोरावस्था!
विचारक्रांति का केंद्र-हरितक्रांति विद्यामन्दिर!!
स्वयं!
सु+अयम!!
इस संधि को बनाने का नियम::उ+अ=व्+अ!

क्या?

यदि-
स्वागत=सु+आगत
जहां उ+आ=व्+आ, तो.

अयम का अर्थ?
सु का अर्थ?
स्वतंत्र?!
स्वतंत्र के साथ क्या होगा?
अरविंद घोष ने कहा है-स्वतंत्र को आत्मा ।


मैं सोंच रहा था।
हम सब एक बाग में उपस्थित थे।
कुछ लड़के आम तोड़ रहे थे।
दीपक सिंह विष्ट हमारे साथ बैठा था।उसने इसी साल बाहर से आकर एडमिशन कराया था। उसके पिता sbi में थे।
हम दोनों एक ही क्लास में थे।



चिंतन, मनन, कल्पना,स्वप्न हमारे जीवन के अहम पहलू बन गए थे।
यही अपनापन व अच्छा समय का अहसास करा रहे थे।
ये हमें गहराई दे रहे थे।हमारे समझ व चेतना को भी।समझ व चेतना के विस्तार को।


अब हमारा क्लास में दूसरा स्थान रहने लगा था।
राजीव तिवारी प्रथम व अनुभव सक्सेना तृतीय। गणित अध्यापक होरी लाल शर्मा बढही अभी जल्द ही हमे पढ़ाना शुरू किया था। वे हमारे पिताजी व हमसे काफी लगाव रखते थे उनके गांव में पिता जी के मित्र थे। आगे चल कर उनकी रोडवेज में नौकरी लग गयी। वे हमें गणित में बेहतर विद्यार्थी मानते थे।दरअसल ये था कि उनकी बातों को हम क्लास में अन्य विद्यार्थियों के अपेक्षा जल्दी समझ जाते थे।लेकिन उसको बाद में अपने में रख नहीं पाते थे।इसका भी कारण था।,वर्तमान में रहना या भविष्य में रहना।वास्तव में जीवन की गति भी यही है।


विद्यालय की ओर से हमें थाना, रेलवे, गन्ना फैक्ट्री, दूरभाष केंद्र आदि में जानकारियों के लिए लिए ले जाया जाता था। वजन7हम सब सम्बंधित कर्मचारियों व अधिकारियों से सवाल करते थे।हम अंतर्मुखी थे लेकिन दिमाग चलता खूब था।इतना कि फिर  थक भी जाए। बहिर्मुखता में हम शारीरिक सक्रियता में हम सहमा सहमा पन महसूस करते थे।इस पर भी मनोवैज्ञानिक तथ्य है-अति बैद्धिक सक्रियता वर्तमान समाज मनोबिज्ञान  से ऊपर होती है या नीचे।ऊर्जा गति मान होती है।ठहराव में नहीं।जीवन गतिशीलता है, विकासशीलता है, अनन्त यात्रा है।अब स्वाध्याय में रुचि बढ़ गयी थी। घर में चन्दामामा, चंपक, बाल भारती, नंदन, धर्मयुग, सोवियतसंघ आदि पत्रिकाओं का भी अध्ययन करने लगे थे।


सन  1994 ई0!

ब्रह्मा, विष्णु व महेश आंख बंद कर क्या प्राप्त करना चाहते?

प्रार्थना सत्र के दौरान पांच मिनट करवाए जाने वाले 'ब्रह्मनाद' से हमें आंख बंद कर बैठने की प्रेरणा मिली। ज्ञान की शुरुआत उपनिषद से होती है।इसका मतलब बैठने से भी है।

आंख बंद कर हम शांति, सुकून की ओर बढ़ना शुरू करते हैं।

अन्य विद्यार्थियों ,बच्चों से अलग हमारी दुनिया बनने लगी।

कुछ हूं जो सभी में है,दुनिया में है।जो सबको एक मे बांधे है।उससे दूरियां ही हम सब की समस्या है।

आर्यसमाज में होने वाले तीन चार दिवसीय वार्षिक उत्सव में हम जाने लगे थे। यज्ञ(हवन) में धुंआ सामने बैठना तो मुश्किल था लेकिन संवाद, वार्ता आदि में बेहतरी महसूस होती थी।


मोहल्ले के ही सुशील वर्मा के साथ एज दो बार जयगुरुदेव सत्संग में भी पहुंचा था।

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अक्टूबर 1994 ई0!



सरदार बल्लभ भाई पटेल जयंती में हम उपस्थित थे। सायंकाल होने को आयी थी।पता चला कि प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की उनके ही अंगरक्षकों ने ही हत्या कर दी।



यहां से अब हमें राजनीति में कुछ कुछ रुझान होना शुरू हुआ।

अब रात्रि हो चली थी।
अच्छा बुरा के अहसास से परे की स्थिति थी।आंखें नम थीं।
सूक्ष्म व कारण शरीर में हमारी अन्तर्मुखीता कभी कभी अति गहराई में पहुंचा देती थी।


22मार्च 2020ई0!एक दिवसीय लॉक डाउन !

किसी को महसूस हो या न हो, हम महसूस कर रहे थे-प्रकृति में शांति, सहजता आदि पहले से ज्यादा। यथार्थयथार्थ, वर्तमान पहले से ज्यादा। इसी तरह उन दिनों??उन दिनों वर्तमान की तरह हाल नहीं थे। गांव व शहर से बाहर निकलने के बाद बाग ही बाग।खूब हरियाली2।बरसात भी खूब1।इंसान को भी एक दूसरे के लिए वक्त ज्यादा।वर्तमान से ज्यादा उस वक्त प्रकृति शांत व सहज में।

कुछ और भी...


इंसानी भागदौड़ जिधर है उधर से भी ज्यादा महत्वपूर्ण उसके विपरीत भी कुछ है।

मई जून की छुट्टियां में हम ननिहाल मोहिउद्दीनपुर चले2 जाया करते थे।अपने पैतृक गांव जाना नहीं होता था।साल दो साल में एक दो दिन के अलावा।

हमारा पेट गड़बड़ रहता था।खाने पीने में डरा डरा सा रहता था।
ननिहाल में ये डर गायब हो जाता था।

नाना बेसिक में टीचर के अलावा वैद्य जी ज्यादा माने जाते थे।चूर्ण गोलियां की कमी नहीं थी।और भी कुछ...!?सहज सा, सब सँवरा सा लगता था।


हरित क्रांति विद्या मंदिर!
हम हरित क्रांति विद्या मंदिर में विद्यार्थी थे।कक्षा 08 तक हम वहीं पढ़े थे।हमारे वैचारिक धरातल को आधार देने मेँ वहां हरिपाल सिंह की बोध कथाएं बड़ा योगदान दिए। जो पहले सरस्वती शिशुमन्दिर योजना में थे।


लेकिन अपनी समस्याएं अपनी ही होती हैं।वे जिस स्तर से उभरती है,उसी स्तर पर ही समाधान भी आवश्यक है।समाधान भी अपना ही काम आता है।परिवार, समाज, स्कूल आदि में प्रेरणा के लिए काफी कुछ होता है लेकिन हमने महसूस किया उत्साह, सामर्थ्य विकास, साहसिक कार्य क्षमता, कर्मठता विकास, लक्ष्य प्रति सजगता व ततपरता,प्रतिकूलताओं में भी अपने कर्तव्यों की अडिगता आदि कैसे?किशोरावस्था में हमारी ये समस्याएं थीं।


एक साधे सब सधे!


सिर्फ आत्मा से परम् आत्मा!सिर्फ तत्व से व्यक्तित्व!

आध्यत्म, मानवता, सम्विधान ही हमें उस वक्त से ही समाधान दिखने लगे थे।


स्व से ही स्वाभिमान!
स्व से ही स्वतन्त्रता!
स्व से ही स्वास्थ्य!
आत्मा वसे ही आत्म निर्भरता!
आत्मा से ही आत्मसम्मान!
आत्मा से ही अध्यत्म!!!


आर्यसमाज में एक विद्वान ने कहा था-स्वयं ही हम सबकुछ हैं।


विद्यार्थी जीवन कैसे ब्रह्मचर्य जीवन बने?इस पर अभिवावकों, स्कूलों व सरकारों को विचार करना चाहिए।


अशोकबिन्दु भईया :दैट इज...?!पार्ट03

दिनेश सिंह व रजनीश सिंह!
दोनों भाई भाई थे।जो हमारे साथ ही पढ़ते थे।
कक्षा08 पास करने के बाद वे दोनों सपरिवार सहित तिलहर के मो0 पचासा में आ गये थे।

दीपक सिंह विष्ट!

वह खटीमा आकर रहने लगा था।

सर्वेशसिंह कुशवाह ,राजेश शर्मा ही अब नजदीक थे।
मोहल्ले में एक परिवार और भी था।जिसमें एक लड़का जसकरन सिंह के साथ हमारा मिलना जुलना था।




कक्षा नौ में आते आते जीवविज्ञान में रुचि हो गयी थी।
दर्शन,आध्यत्म की पुस्तकें वक्त वेवक्त पढ़ते ही रहते थे।


नफरत!द्वेष!भय!!



घर से बाहर निकलने के बाद चारो ओर अनेक मनुष्य, बच्चे, स्त्री पुरुष, जीवजन्तु, वनस्पति।


मन ही मन महसूस होने लगा था अनेक से व्यवहार नहीं,बोलना नहीं।अनेक से भय भी। 


लेकिन नफरत कैसी, द्वेष कैसा?सबकी अपनी अपनी दुनिया।कुछ मुश्लिम लड़के लड़कियां भी करीब में थे, मन में उनके प्रति कोई दुर्भावना न थी लेकिन उनकी कुछ बातें व आचरण हमें अखरता था।एक दो के घर भी जाना होता था लेकिन कोई मन को दिक्कत नहीं।

सभी से बोलने को अवसर की तलाश!



कक्षा पांच से ही शांति कुंज व आर्य समाज का साहित्य पढ़ने लगे थे।अखंड ज्योति पत्रिका, गीता आदि का भी अध्ययन करने लगे  थे।विचार बने थे-दुश्मनी किससे?सब हालात है।सबसे व्यवहार रखने की कोशिश रखो।सबसे बोलने जी गुंजाइश रखो।

नमस्ते-अभिवादन सबसे अच्छा माध्यम।
सुबह सुबह जब टहलने निकलते थे तो कुछ चेहरे रोज नजर आते थे।उनसे रोज नमस्ते शुरू हो गयी थी।
हमजोली तोअपने कुछ बड़ों से भी नमस्ते।लड़कियों से भी नमस्ते।
हमारे प्रेरक हरिपाल सिंह, हम देखते थे हम जब स्कूल जाते थे तो जो बच्चे नमस्ते नहीं करते थे, उनसे वे ही नमस्ते कर लेते थे।रमेश भैया नमस्ते... अर्चना बहिन नमस्ते..... बगैरा बगैरा....!!



बसुधैव कुटुम्बकम!



साहित्य को पढ़ कर इस पद को समझने लगे थे।
अंदर ही अंदर महसूस भी होता था-सारी कायनात को सोचने पर।

कोई जातिवाद नहीं!कोई मजहब वाद नहीं!कोई छुआ छूत नहीं!!



विद्यालय में साथ साथ रहना-समाज में भी आ गया।साथ साथ खाना पीना भी।


समाज से ही भेद मतभेद का मैसेज मिला।
घर से भी नहीं।
हां, घर में बाहर वालों  में से कुछ के लिए गिलास बर्तन अलग थे।हम बड़े हुए तो ये भी सब हटा दिया।


परहेज काहे का?छुआ छूत कहे का?गांव छोड़ने से पिता जी दो कदम आगे बढ़ गए । हम चार कदम इस मामले में। हम महसूस करते थे तथाकथित ब्राह्मण जाति से लोग हम सब से परहेज करते थे।कोई उनमे से घर नहीं आता था।हालांकि पड़ोस में उनके घर कम नहीं थे।


आर एस एस के स्वयंसेवकों से नजदीकियां थी तो लेकिन हम उनके जन्मजात उच्च होने के भाव व विचार से नफरत करते थे।

स्तर-स्थूल,सूक्ष्म व कारण!

स्थूलताओं से तो जुड़े ही थे।
सूक्ष्म से व कारण से भी जुड़ने लगे थे।हालत ही ऐसे थे। समाधियों, कब्रों आदि से कोई भेद न, भय न था।


भूगोल की पुस्तकों में जब पृथ्वी व अंतरिक्ष की तश्वीरें, विज्ञान प्रगति पत्रिका से भी देखते थे, दूर काफी दूर छितिज का.... धुंध.... अदृश्य.... अनेक जिज्ञासाएं... बेचैनी सी पैदा हो जाती थी।
मन के किसी कोने से वैज्ञानिकता भी उठने लगी थी।खामोशी हमें वो अहसास कराने लगी थी कि हमें ताज्जुब होता था।


कभी कभी लगता था-हम और कहीं के हैं? कुछ अपना खोया सा है,जिसकी तलाश है। अंतरिक्ष में कोई धरती है।जहां भी हम हैं।आगे चल कर पढ़ा, पढ़कर सुकून मिला कि भूमध्यसागरीय जंगलों में कुछ कबीले है, जो अपना पूर्वज किसी लुन्धक धरती से आया बताते हैं जो कि मत्स्य मानव थे। मानव के आदिपूर्वज  रामापिथेक्स के अवशेष वहां, अफ्रीका में व भारत में शिवालिक पहाड़ियों में मिले हैं। हम खामोशी के रहस्यों को समझने लगे थे।ऋषि मुनि ठीक करते थे कि आत्मा पूर्ण ज्ञानी है।विद्यार्थी जीवन ब्रह्मचर्य जीवन इसलिए है कि बाहर के अलाबा अंदर भी ज्ञान छिपा है,उस ज्ञान तक विद्यार्थी जाए।



मोहल्ले में रामबिलास, एक वैद्य जी ,जो बुजुर्ग थे....उनके साथ शाम तीन चार बजे मीटिंग हो जाती थी। सर्वेश सिंह कुशवाह के मकान पर दिन मु दे अधिकतर जाना होता था, वहां सामने एक बुजुर्ग से सत्संग होता रहता था। कबीर, बुद्ध, भक्त काल आदि का जो कि पढ़ा समझ मे आने लगा था-उस पर चर्चा करने लगा था।



सगुन निर्गुण को जानने लगा था।

हम उम्र लड़के लड़कियों से बातें नहीं हो पाती थीं।उनकी बातें तो दुनियादारी की,फिल्मों की।

उस समय जो खेल थे, वे तो अब समाप्त ही हो गए।

लेकिन हमारी रुचि खेल में न थी।


बस, चिंतन,मनन, कल्पना, स्वप्न.....


आर्य समाज में जाना-25 साल तक का जीवन ब्रह्मचर्य जीवन लेकिन...!?


लेकिन!!?



कोई भी अंतर्ज्ञान में?!


देखा जाए तो कोई हमजोली हमें न भाया।

बुजुर्गों, सन्तों के बीच ही ठीक था।

लेकिन वे भी!?

उनमें से भी कुछ में विकृतियां!?

क्या कहें?खजुराहो मन्दिर की दीवारों की तश्वीरें फेल!समझने वालों के लिए इशारा ही काफी।




बाजार में जब जाते थे तो कपड़े की एक दुकान थी-देशबन्धु गुप्ता की।उनके घर पर भी जाता था।उनका व्यक्तित्व काफी आकर्षक था। उनके घर भी सब ठीक था।सब कुछ संस्कारवान, शालीन लगता था। पड़ोस के रामबिलास गंगवार उन्हीं  के यहाँ मुनीम आदि का काम देखते थे।


देशबन्धु गुप्ता ने जब शरीर त्याग दिया तब हम उनका अहसास अपने करीब करते रहे। उनसे अनेक मार्गदर्शन भी मिलते रहे। अभी तक कटरा में भी।


कटरा के कुछ फैमिली का अहसास स्वप्न में उन्होंने कराया था।

अशोकबिन्दु भईया ::दैट इज..!?पार्ट 04

हम स्वयं अपने नजर में क्या हैं?
चरित्र नहीं है-समाज की नजर में जीना।
आत्मा से परम् आत्मा !
चरित्र है-आत्मा!
चरित्र है-परम् आत्मा!
चरित्र है कर्म करने का हेतु या नजरिया!
आत्म साक्षात्कार!
वह दूसरे के सामने बुराई कर रहा था, हमें पता चला।
भीड़ में लोगों के सामने कभी उसने हमें गम्भीरता से न लिया।हम ओर कटाक्ष ही करता रहा।

जब हमने उससे दूरी बना ली ,दिल में उसके प्रति वैसा ही था जैसे पहले था।
वह बोला-कसम से,हम ऐसे नहीं हैं।बताओ तो कौन कह रहा था?

"स्वयं अपने दिल से पूछो।"

आत्म साक्षात्कार!

अंतर्ज्ञान से जुड़ना ही कारण है, विद्यार्थी जीवन का ब्रह्मचर्य जीवन होना।

हम हरितक्रांति विद्या मंदिर में ही थे।
हम कक्षा सात के विद्यार्थी थे।
कक्षा सात व आठ के बीच में द्वंद हो गया था।
लेकिन मुद्दा ऐसा था,सच्चाई कक्षा आठ के बच्चों के साथ थी।

हमें कक्षा सात के विद्यार्थियों ने घेर लिया।
हम तो भीड़ भाड़ में वैसे भी सहमे सहमे से रहते थे।


लेकिन....


अब तो बचना था।

हमारे हाथ एक डंडा आ गया।आंख बंद कर हम चलाने लगे।
अपनी उम्र के 20 साल हमने आर एस एस आदि के लोगों के बीच भी बिताए हैं।उनकी शाखा ओं में लाठी चलाने का अवसर मिला है।


जब हमने आंख खोली तो हमारे चारों ओर कोई न था।
रोज मर्रे की जिन्दगीं में साधारण रहो।
जियो, जीवन जियो।सहज रहने की कोशिश करो।अनन्त यात्रा के साक्षी बनो।अपने अस्तित्व को महसूस करो।


ये धैर्य,शांति, मौन में ही सम्भव है।खुद से खुदा ओर....


कक्षा नौ में हमारे साथ एक और जुड़ा-अनुपम श्रीवास्तव।जो रायबरेली से था।उसके पिता बैंक में थे।
उसे गाने का शौक था।हमें लिखने का शौक हो था।
कक्षा आठ में ही हमने लिखना शुरू कर दिया था।
उसका हमारा साथ कक्षा12 तक रहा।

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धर्म स्थलों में हमें गुरुद्वारा ही पसन्द था।
सिंदर सिंह!जूनियर क्लासेज से ही सिक्ख लड़का-सिंदर सिंह हमारे साथ पढ़ता था।
वह अब भी हमारे साथ था।

कक्षा नौ नौ में हमारे क्लास टीचर थे-टी एन पांडे।

हालांकि कालेज में सिंदर सिंह व उसकी मित्र मंडली के साथ हम नहीं रहते थे।क्योंकि वे शरारती थे।
हम हमेशा टॉपर, गम्भीर, शालीन विद्यार्थियों के साथ ही रहते थे।लेकिन मन से भेद किसी भी प्रति न था।

सिंदर सिंह के साथ अनेक बार रेलवे स्टेशन के पास के  गुरुद्वारा आना जाना रहता था।

रविवार या छुट्टी वाले दिन उसके खेत पर भी पहुंच जाते थे।उसका खेत नगर से बाहर ही तुरन्त था।

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जो भी हो जैसा भी हो,अपने स्तर से अपना सुधार होना चाहिए।
ऊपर से क्रीम पाउडर लगा लेने से हम सबर नहीं जाते ऐसा हम व्यक्ति के शिक्षा के स्तर पर कह रहे हैं ।
शिक्षा ? कैसी शिक्षा ?
जो सिर्फ बाहरी, शारीरिक, भौतिक चमक दमक में सहयोगी है ?नहीं ,कदापि नहीं ।हम जो भी अध्ययन करते हैं उस पर चिंतन मनन कल्पना करते हैं ।ऐसे में हो सकता है कि बोलना न हो पाए लेकिन लिखना ,नजरिया विस्तार -परिमार्जन ,अंतःकरण शुद्धि ,समझ में विस्तार -गहनता  आदि में सुधार होता है ।हमें ज्ञान हुआ यही कारण है कि बड़े-बड़े विद्वान ,शोध कर्मी सेमिनार में अपने शोध पत्र पढ़ते हैं जो चिंतन मनन कल्पना स्वप्न से लिया है ।वह लिखते हैं या पढ़ते हैं बोलते नहीं ।इसका मतलब आम आदमी की नजर में बुद्धिहीनता हो सकता है लेकिन जो वास्तव में अंतर्ज्ञान में है उसके लिए नहीं ।शिक्षा भी चरित्र की तरह आम आदमी व वर्तमान समाज की धारणाओं के आधार पर अपने को बनाने में नहीं है ।बरन महापुरुषों ,शैक्षिक पाठ्यक्रम से सीख आदि के माध्यम पर अपने को बनाना है।

हाई स्कूल 1998 की परीक्षा हमारी बीसलपुर डाइट में थी ।इस परीक्षा के बाद हम मनोविज्ञान दर्शन शास्त्र शिक्षा शास्त्र का भी अध्ययन बड़ी रुचि से करने लगे थे।

अशोक बिंदु भईया : दैट इज...?! पार्ट 05

क्लासेज सिस्टम में हमारे पास जो विषय थे, उनमें हमें विज्ञान व जीवविज्ञान में रुचि थी।इतिहास के प्राचीन काल खंड में भी।

हाईस्कूल 1998 परीक्षा के बाद जब हमने स्वमूल्यांकन किया तो पता चला, वही के अनुसार अंक प्राप्त किए।

उस समय प्रथम श्रेणी आना बड़ा मुश्किल होता था।
जब हमने सामाजिक विज्ञान,जीवविज्ञान में 60% से ज्यादा अंक प्राप्त किए तो इस पर कुछ अध्यापकों को विश्वास न हुआ। क्योंकि हमारा व्यक्तित्व असामान्य था और बोलचाल भी नाममात्र की थी ।लेकिन ए अध्यापकों में मूल्यांकन हीनता ही थीl

 पहले भी और अब भी देखते हैं कुछ बच्चे उनकी नजर में नहीं होते यहां तक की उपेक्षित भी होते हैं। बे उनसे भी ज्यादा बेहतर स्थिति में थे जिन्हें वे महत्व देते थे। इस विषय पर कभी बाद में लिखेंगे ।

अब हम कक्षा 11 में एडमिशन लेने जा रहे थे ।

अपनी निजता, स्व, आत्मा, अंतर ता आदि से दूर होना हमारा शत्रु है ।हमें कक्षा 11 में बायो ग्रुप ही लेना था जो बिल्कुल तय था। लेकिन एक सहपाठी सर्वेश सिंह कुशवाहा के साथ हमने मैथ्स ग्रुप में एडमिशन करा लिया। उसका साथ तो ठीक था लेकिन उसका फैसला हमारा न था । यहां से हमारे दो रास्ते बनने लगे। हम दो माइंड होने लगे। मन में कुछ और तन में कुछ और.... ऐसे में फिर हमें अंतर्मुखी होना  पड़ा ।

अभी तक सब सही था ।
दुनिया वही थी, परिवार वहीं था, पास पड़ोस वही था लेकिन तब भी सब कुछ बदलना शुरू हो गया था।नजरिया बदलता है तो दुनिया भी बदलती है। यह बदलाव जिधर जाना चाहिए था उधर न था।


आंख बंद करने पर ही सब कुछ ठीक था ।
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पेड़-पौधे, बच्चे ,स्त्रियां, प्रकृति में आकर्षण तो हो सकता है लेकिन  ये आकर्षण की धारा और कहीं से कहीं और जगह जाती है ।कुछ कुछ अनुभव होने लगा था ।

हमारी ओर से विपरीत लिंग आकर्षण किसी के लिए कष्ट देने नहीं जा रहा था ।किसी का चरित्र हनन करने नहीं जा रहा था। लेकिन हमें अवश्य उलझा रहा था ।

पेड़ पौधे ,बच्चे, स्त्रियां, पुस्तके आदि प्रकृति के संग सहचारी का हेतु तो कुछ और है जो एक पागल पथिक ही जान सकता है। अनंत यात्रा ,सच्चिदानंद यात्रा  को महसूस करने वाला ही जान सकता है ।
कुछ है- अदृश्य!
 स्त्री जाति से संबंध की सीमाएं व मर्यादा जातियों - मजहब आदि की भावनाओं में खत्म नहीं हो जाती।
 ये क्या है?
 वह मर जाती है और फिर वह अपने प्रेमी के मां की कोख में जन्म लेकर अपने प्रेमी के ही पास आ जाती है।
क्या है ये?
 ये क्या प्रेम?
प्रेम एक बेनाम रिश्ता है। समाज की निगाहें कितनी गलत है ?लड़का लड़की के बीच के अज्ञात संबंधों को समाज अपनी धारणा के आधार पर गलत अज्ञात या गलत प्रचार या गलत ज्ञान या गलत विचार क्यों बना देता है ?
धन्य ,समाज !
जो पवित्र प्रेम को कलंकित करता है । जिसमें लड़के लड़कियां प्रेम को शारीरिक आकर्षण समझ बैठते हैं ।

हम उस दौरान ही महसूस करने लगे थे- प्रेम तो वह दशा है जो हमें वह दशा देती है जो हमें मन से सब के प्रति सद्भावना सब का सम्मान करना सिखाती है ।

ये विविधताएं  तो हमारे लिए विभिन्न मर्यादा खड़ी करती है बस ।हमारे लिए कर्तव्य पर खड़ी करती हैं बस।
 ये सब आंख बंद कर बैठने से सब ठीक था ।
लेकिन खुले आंखों  हम बनाबटी दुनिया के बीच भ्रम शंका भय प से ग्रस्त थे। मनुष्य द्वारा निर्मित बनावटी पूर्वाग्रह छापे अशुद्धियां आदि हमें परेशान कर देते थे । उन दिनों हम सामाजिक लोकतंत्र ,आर्थिक लोकतंत्र ,सामाजिक न्याय आदि के संबंध में भी सजग होने लगे थे ।

कटरा - तिलहर से सत्यपाल सिंह यादव के माध्यम से हम कॉलेज के कुछ मुस्लिम लड़कों के माध्यम से राजनीति में भी सक्रिय हो गए थे। उस वक्त से ही हम अपने पिताजी श्री प्रेम राज वर्मा के माध्यम से कटरा में श्री हरिशंकर गुर्जर का नाम  सुनते रहते थे लेकिन क्या पता था एक दिन कटरा हमारे कर्म स्थली बनेगा? उस समय हमारा विचार अभी भी हमारा विचार रहा है हमें सरकारी नौकरी नहीं करनी है ।संघ की शाखाओं से हमने जाना है महसूस किया है सरकार, सरकारी संस्थाएं समाज और प्रकृति से बढ़कर नहीं हो सकती ।हम उस वक्त सिर्फ लेखन, समाज सेवा, राजनीति ,स्वरोजगार आदि पर ही सोचते थे। लेकिन परिवार के हालातों ने विशेष कर पिता जी के निर्णयों ने हमें यहां ला पटका। जुलाई 1996ई0 में हम घर छोड़ चुके थे।

अशोकबिन्दु भईया ::दैट इज...?!पार्ट न06




चिंतन, मनन, कल्पना, स्वप्न, लेखन, स्वध्याय, मेडिटेशन हमारे जीवन का हिस्सा हो गया।


विज्ञान प्रगति, आविष्कार जैसी वैज्ञानिक पत्रिकाओं का अध्ययन व उसमें -'हम सुझाएँ आप बनाएं' के अंतर्गत मन सक्रिय हो गया था।

एक बार समाचार आया था कि अनुसंधान केंद्रों में वैज्ञानिकों ,कर्मचारियों की कमी है।

 हम सोचते रहे हैं - हमारे आसपास अनेक विज्ञान विषय के छात्र व अध्यापक उपस्थित हैं लेकिन उनका सोच, चिंतन, नजरिया ,विचार ,भावना आदि वैज्ञानिक नहीं है। तो ऐसे में कैसे अनुसंधान शालाओं की नियुक्तियां भरें ?अभिभावक भी अपने बच्चों को सिर्फ घरेलू व कमाऊ पूत के रूप में देखना चाहते हैं लेकिन हमारा ऐसा नहीं था ।हम इंटर तक संस्थागत वैज्ञानिक छात्र थे ।नजरिया ,मनन ,कल्पना, सत्य से भी वैज्ञानिक थे ।लेकिन हममें हालातों से संघर्ष करने का चाहत न था और फिर इस मामले में हम देश की व्यवस्था से शिकायत रखते हैं । किसी के वैज्ञानिक होने के लिए ,किसी को शोध में अवसर देने के लिए इस देश के मानक ही गलत हैं। अब जरूरी नहीं है कि शोध, आविष्कार आदि के लिए वही व्यक्ति सफल है - जिसके स्नातक में 50% से ऊपर और स्नातकोत्तर में 55% से ऊपर अंक हो । अंको का खेल खत्म होना चाहिए ।अभ्यार्थी के चिंतन, मनन ,नजरिया ,आचरण,उसका उत्साह ,खोज की प्रवृत्ति ,अन्वेषण की प्रवृत्ति आदि महत्वपूर्ण होनी चाहिए। हमने देखा है - देश के अंदर ऐसे भी कैंडिडेट हैं जो स्कूली शिक्षा से दूर हैं लेकिन उनमें प्रतिभाएं हैं । वे किसी नई वस्तु का आविष्कार कर सकते हैं ,वे  एशिया और ओलंपिक में स्वर्ण पदक जीतने वालों से कम नहीं है ।हमें दुख होता है- भारत के सिस्टम से ,अफसोस ! इस संबंध में मेरे पास अनेक घटनाएं भी हैं ।



हमने कभी न सोचा था - सरकारी नौकरी ऐसी करें जहां हमारी कल्पनाशीलता ,चिंतन ,मनन आदि रुक जाए । जीवन तो विकास शीलता है, विज्ञान का कभी अंत नहीं होता, विज्ञान कभी विकसित नहीं होता। वह भी निरंतर होता है ,विकासशील होता है। लेकिन रास्ता कक्षा 11 में आकर तब बिगड़ गया जब बायो ग्रुप में न जाकर मैथ्स ग्रुप में आ गया। उससे तो अच्छा था -मनोविज्ञान, शिक्षा शास्त्र ,खगोल विज्ञान ,अंतरिक्ष विज्ञान आदि विषयों के साथ हम जो थे हमारे रुचि के  , लेकिन ये विषय नगर में ही न थे, नगर की छोड़ो कुछ विषय तो प्रदेश में ही न थे।

 खैर.....!?

2 महीने के मानसिक खींचतान के बाद हमने कक्षा 12 के बाद आर्टग्रुप में प्रवेश कर लिया यह हमारी दूसरी भूल थी आर्ट ग्रुप में आ तो गए थे लेकिन यहां पर भी हमारे विषय जो हुए वे हमारे न थे।

 अब याद आ रहा था -गृह त्यागी।
 विद्यार्थी के 5 लक्षणों में से 1 लक्षण- गृह त्यागी !

लेकिन.....


अगस्त 1990 ईस्वी !

 B.a. प्रथम वर्ष में हम नए 2 विद्यार्थियों के संपर्क में आए -नरेश राठौर और छत्रपाल पटेल। इस दौरान सुनील संवेदी ,राजेश भारती से भी मिलना जुलना बड़ गया । हालांकि ये दोनों हम से जूनियर थे। कभी कभार प्रभात रंजन नाम का लड़का भी मिलने चल चला आता था लेकिन हम उससे मिलना नहीं चाहते थे।

 उस समय देश के प्रधानमंत्री थे- विश्वनाथ प्रताप सिंह।

 वे देश के आठवें प्रधानमंत्री थे।
 उन्हें भारत की पिछड़ी जातियों में सुधार करने और सामाजिक न्याय की कोशिश के लिए जाना जाता है ।उस वक्त पढ़ा-लिखा पिछड़ा वर्ग उनसे काफी प्रभावित था। इन से पूर्व देश के प्रधानमंत्री राजीव गांधी थे। इनका कार्यकाल 2 दिसंबर 18 सो 89 से 10 नवंबर 1990 तक रहा।

कुछ भोजपुरी जोकि गन्ना सोसाइटी में सुपरवाइजर थे -अरुण सिंह , उमेश राय आदि हमसे कहते रहे थे-बनारस या इलाहाबाद निकल जाओ ,कामयाब हो कर लौटोगे ।तुम्हारी अंदरूनी हालात , समझ अच्छी लगती है।

 लेकिन....

 लेकिन - वेकिन!
 परंतु -वरंतु!

 हूं......

 उन दिनों हमारी खास रचना थी--

 अब क्रांति होगी,
 रोशनी फिर तेज मानव के मशाल में होगी;
 अब क्रांति होगी ।
कृष्ण की भूमिका निभाएगा विश्व में भारत ,
अब क्रांति होगी ।


हमारा माइंड - विश्व सरकार, वसुधैव कुटुंबकम, विश्व बंधुत्व, दक्षेस सरकार आदि को लेकर एक साझा मंच में जीने लगा था। जिसमें सभी आधार आध्यत्म शक्तियां ,मानवतावादी संगठन एक मंच पर थे।

 उन दिनों छत्रपाल पटेल ,नरेश राठौर आदि के साथ आर्य समाज संस्था में आना जाना तेज हो गया था ।
लेकिन एक बार हमें ताज्जुब हुआ- दिल्ली से आए एक प्रचारक ने जब हम सब को बताया- धरती पर मानव की उत्पत्ति गाजर मूली की तरह हुई है ।मानव लाखों वर्ष वनस्पति व जंतु के बीच एक कड़ी रहा है। हमें इस ज्ञान पर ताज्जुब होता है। हमारे मस्तिष्क ने इसे स्वीकार नहीं किया और किसी ने भी इसे स्वीकार नहीं किया था।

 अब हमारी शिक्षा मात्र, स्कूली शिक्षा खानापूर्ति हो गई थी।
 हमारा हेतु डगमगा गया था ।
रास्ता तो और था चल और पर रहा था ।
हमने अपना ध्यान स्वाध्याय, लेखन ,प्रकृति के बीच आना जाना, मेडिटेशन आदि पर जरूर लगा रखा था।
 जयशंकर प्रसाद ,मुंशी प्रेमचंद्र, धूमिल ,फणीश्वर नाथ रेणु आदि का पूरा साहित्य कालेज पुस्तकालय से लेकर पढ़ लिया था ।

स्नातक के 3 वर्ष हमारे वर्तमान में सिर्फ यूं ही गुजर गये बिना किसी लगनता ।

हमारा मकसद तो इंटर करने के बाद नगर छोड़ने के बाद ही आगे बढ़ना था लेकिन ऐसा न हो सका।

 देखा जाए तो स्कूली शिक्षा के पाठ्यक्रम प्रति कर्मठता हाईस्कूल तक ही रही ।इसके बाद हमारी शिक्षा मात्र खानापूर्ति रह गई थी ।जो था उससे दूर था।
 देखा जाए तो हम अकेले पड़ने लगे थे।
 कहने के लिए परिवार ,पास पड़ोस ,समाज ,स्कूल, सहपाठी ...लेकिन हम जो अपने जीवन में चाहते थे उस मामले में हम अपने जीवन में अकेले हो चुके थे।

 ऐसे में पुरानी आदतें -स्वाध्याय, लेखन, मेडिटेशन ,प्रकृति के बीच रहना, छोटे बच्चों के बीच रहना और बढ़ गया था।




मई-नबम्बर 1993ई0!

इन दिनों  हम एक साधना कर रहे थे- हम अपने अतीत को कैसे जाने ?पिछले जन्मों को कैसे जाने? इसकी प्रेरणा हमें बौद्ध धर्म के जातक कथाओं से मिली थी। इसके प्रति जब कुछ सहज होना शुरू हुआ तो हमें सोनभद्र और सोनभद्र के आस पड़ोस में पहाड़ियों और एक तालाब का दर्शन हुआ ।इससे पहले हमने अभी तक सोनभद्र का नाम नहीं सुना था ।हम अपने किसी पूर्वज के  साथ एक रथ पर सवार थे और कोई हमारा पीछा कर रहा था। आगे चलकर हमने जानकारियां एकत्रित की पूर्व डीआईजी एवं पीलीभीत लोक सभा से जनता दल की ओर से प्रत्याशी महेंद्र सिंह से भी वार्ता हुई। हमें कुछ जानकारियां ऐसी मिली ,कुर्मी क्षत्रिय के लिए अनेक गढ़ हैं, चित्रकूट के पास पटना के पास भी। उनका कहना था कुर्मी क्षत्रियों का भी अपना गौरवशाली अतीत है ।


हमने एक सपना और देखना शुरू किया था जो हमें बार-बार अपने किसी पूर्वज के साथ कर्नाटक कोलार मैसूर के जंगलों में ले जाता था। आगे चलकर हमने इस पर शोध किए जानकारियां एकत्रित की ।वह चौंकाने वाली थी ।इस पर हम कभी भविष्य में लिखेंगे ।

b.a. तृतीय वर्ष फाइनल की परीक्षा के बाद एसएस कॉलेज शाहजहांपुर में बीएड प्रवेश परीक्षा देने आया ।
भाई अवनीश ने उन दिनों बीएससी प्रथम वर्ष की परीक्षा दी थी वह उसी कॉलेज में छात्र था और वहीं पड़ोस में अजीजगंज में रह रहा था ।हमें उम्मीद नहीं थी हम B.Ed प्रवेश परीक्षा उत्तीर्ण कर पाएंगे। b.a. फाइनल का रिजल्ट आने के बाद हमने अर्थशास्त्र विषय से एम ए प्रथम वर्ष में एडमिशन करा लिया ।

अक्टूबर में हमें B.Ed में एडमिशन करवाने की सूचना मिली ।

बीएड संकाय एसएस कॉलेज शाहजहांपुर में जब हम पहुंचे तो विभागाध्यक्ष आकुल जी के व्यवहार से हमका काफी प्रभावित हुए। वैसे तो  हमारी इच्छा B.Ed में एडमिशन की न थी लेकिन फिर भी आकुल जी से करीबी बढ़ने की संभावना से हमने B.Ed में एडमिशन करा लिया और एक ही विचार था की संभावनाओं के नए रास्ते शायद मिल जाए ?यहां नागेश पांडे संजय से परिचय हुआ। यहां के प्राकृतिक वातावरण में हमें मेडिटेशन को और अवसर दिया। इस दौरान- शिक्षा में क्रांति, शिक्षा में प्रयोग, नए भारत की खोज.... आदि पुस्तकों व आकुल जीके संबोधनों ने हमारी समझ को और विस्तार दिया ।मन में जो विचार उठते थे उन्हें व्याख्या मिली।

अशोकबिन्दु भईया :: दैट इज ...?! पार्ट 07

हमारे तीन स्तर हैं-स्थूल, सूक्ष्म व कारण!

ये सब प्राकृतिक अभियान का हिस्सा है।प्राकृतिक प्रबन्धन है।
हम स्वयं क्या है? हम मानवों की व्यवस्थाएं स्वयं प्रकृति अभियान व प्रबन्धन के सामने क्या हैं?

शांति... मौन ....कितना सुकून है?
हम  एस एस कालेज से मिली हुई नहर के किनारे हम बैठे बैठे हुए थे।सुबह का वक्त था।


मानव समाज के अलाबा कहाँ सुकून नहीं है?समस्याएं प्रकृति में नहीं हैं,मानव के जीवन में हैं।अशांत विश्व नहीं है, मानव है।प्रकृति व विश्व में तो सब सहज है।जो है, सब असल है।बनाबटी नहीं,अप्राकृतिक नहीं।


एक दिन हम कमरे से कालेज की ओर पैदल जा रहे थे।
हमारे पास एक पुस्तक-शिक्षा में क्रांति थी ।साथ में एक कॉपी।
मुंह के अंदर बेतुका सा लग रहा था।हमने अपने गालों को अंदर की ओर दांतों को दबा कर सिकोड़ा, मुंह से खून निकल पड़ा।हम घबरा से गये। रास्ते में एक आयुर्वेदिक डॉक्टर बैठते थे।हम उनके पास जा पहुंचे।उनसे नमस्ते की,पड़ोस में नल लगा था, कुल्ला कर बैंच पर बैठ गया।कुछ देर बैठा रहा, मालिक को याद किया।मन को शांत किया और फिर आगे बढ़ गया।

हम कालेज जाकर पुस्तकालय पहुंच गए।
तुरन्त ही वहां से आ बीएड संकाय की ओर और आ गया।।फील्ड में बैठ कापी में कुछ लिखने लगा। थोड़ी देर में अनुपम श्री वास्तव आकर बैठ गया।वह वहां से बी एस सी कर रहा था। हमारी सामने निगाह पड़ी। हमारे बैच के लड़के लड़कियां आने लगे थे।एम एड का क्लास इस वक्त चल रहा था।जब आकुल जी आफिस में आकर बैठ गए तो हम क्लास में जा बैठ ही पाए कि हमारे बैच में टॉपर अंशु अग्रवाल हमारे पास आ पहुंची कुछ देर हमारी कापी व किताब देखती रही।क्लास में कब आकुल जी आये तो हम सब अपनी अपनी सीट पर व्यवस्थित बैठ गए।


सभी पीरियड अटैंड करने के बाद जब हम कालेज से बाहर चल दिए तो नागेश पांडेय संजय भी हमारे साथ चल दिए।
"आज हम आपके कमरे पर चल रहे हैं।"

"चलो।"

हम दोनों पैदल ही चल पड़े।

साथ में कुछ अन्य लड़के लड़कियां भी थे।

कमरे पर पँहुच हमने शीशा में अपना मुंह देखा।मुंह के अंदर तो सब सामान्य था।लेकिन बायां जबड़े से अपने को अच्छा महसूस नहीं कर रहा था।  दिन तो गुजर गया।रात अनेक शंकाओं में बीती।बायीं ओर एक दाढ़ तीन साल पहले ही उखड़ चुकी थी।उसके ऊपर मसूड़ा का मास आ गया था।कोई समस्या न थी लेकिन अब...?! ये खून क्यों?!खैर, दो तीन दिन बाद सब सामान्य हो गया।

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 नींद या अर्द्ध निद्रा में कुछ स्वपन हमारे लिए खास हो गए थे। जो एक से थे और महीनेमें पांच छह बार उन्हें देख लेता था।



अजीजगंज, गर्रा पुल से लेकर बरेली मोड़ तक का प्राकृतिक क्षेत्र (उन दिनों खेत खलिहान, बाग उपस्थित थे) हमारे साधना, अंतर्चेतना के स्तर के विकासशीलता की प्रयोगशाला बन गए थे।

यह क्षेत्र कभी हमारे पिताजी प्रेम राज वर्मा का भी अध्ययन क्षेत्र भी रहा था। पिता जी का सत्य पाल यादव व हरि शंकर सिंह गुजर से सम्पर्क यहीं हुआ था।

प्रकृति हमें आकर्षित करती रही है।बाग बगीचों से हमें लगाव रहा है।


जगदीश चन्द्र बसु को हम हाईस्कूल व   इंटर क्लास इस दौरान ही पढ़ चुके थे। हम भी उनकी तरह प्रकृति के बीच सर्व व्याप्त अंतर चेतन आत्म संवेदना स्थिति को महसूस करने का प्रयत्न करने लगे थे  ।
हम कक्षा पांच से ही शांतिकुंज साहित्य ,अखंड ज्योति पत्रिका, युग निर्माण योजना आदि को पढ़ने लगे थे ।

कबीलाई संस्कृति ,सहकारिता संस्कृति को हम भूल चुके हैं ।इसकी पेठ सूक्ष्म जगत में भी है लेकिन हम भौतिक सांसारिक जगत में अपने इंद्रिय जगत में इतने रंग हैं कि परिवार के अंदर ही हम कुटुंब भावना की मर्यादा को भुला चुके हैं। हम सब चारों ओर प्रकृति वनस्पति जीव जंतु की डूब या ल य ता संस्कृति ,सागर में कुंभ कुंभ में सागर ....सागर में लहरों की स्थिति बीच अपने को लहर से तुलना, सूरज की किरणों बीच अपने को किरण से तुलना,आदि को लेकर सारी दुनिया व सारा ब्रह्मांड को देखने की सोच ,कल्पना, चिंतन आज  खो चुके हैं ।प्रकाश में हम हम में प्रकाश.... हम सब में प्रकाश..... हम सब में मैं, मैं में हम सब....?!अरण्य जीवन हमारी स्थूलता... हमारा हाड़मांस..!? हम उससे दूर जाकर अंतरसंबन्धों की नैसर्गिकता, एक जंजीर में कड़ियों के सम्बंध... एक एक कड़ी के बीच सम्बंध..!? ये सब क्या यथार्थ नहीं... आध्यत्म भी सूक्ष्म फिजिक्स है।


हम कमरे में बसुधैव कुटुम्बकम व कुरान की एक आयत जिसका अर्थ-सभी एक जमात हैं, लिखे पृथ्वी व प्रकृति को दर्शाती स्वयं बना एक चित्र लगाने लगे थे।



इंटर क्लासेज के दौरान से ही हम अनन्त यात्रा की कल्पना करने लगे थे।उस अनन्त यात्रा की कल्पना से जोड़ कर सारे जगत, वनस्पति, जीव जंतु, प्रकृति को देखने लगे थे।


लेकिन ये काम व खिन्नता ?!

कुछ कहते हैं-काम व क्रोध खत्म नहीं होता।उसे नियंत्रित किया जा सकता है।लोभ, लालच, बेईमानी आदि खत्म हो सकती है।कामनाएं(इच्छाएं)जो हम जीवन में प्राप्त करना चाहते है,जो सांसारिक हैं, उसके लिए हम रास्ता न देख रहे थे।

आध्यत्मिकता, मानवता, सुप्रबन्धन का हम कहीं भी माहौल मानव समाज व संस्थाओं में नहीं देख रहे थे। अभी तक हम विद्यार्थी जीवन में थे। अब स्थितियां बदलने वालीं थीं।कालेज की ओर से हमे  रोटी गोदाम, बहादुर गंज  भेजा गया।वहां कक्षा07में गणित व कक्षा छह में इतिहास पढ़ाना शुरू किया।दोनों में 21 - 21 पाठ योजना पढ़ानी पड़ी।





खबर मिली कि 05 अक्टूबर 1994ई0 से संयुक्त राष्ट्र संघ विश्व शिक्षक दिवस मनाना शुरू करेगा। हमें इस पर प्रसन्नता हुई।

अशोकबिन्दु भईया :: दैट इज?..?!पार्ट08

  05 अक्टूबर 1994 ई0 को पहला विश्व शिक्षक दिवस मनाया गया।

उस वक्त हम एस एस कालेज,शाहजहाँपुर में साहित्यकार व बीएड विभागाध्यक्ष आकुल जी के मार्गदर्शन में उनके मकान पर था।
सत्र 1993-94ई0 में हमारा बीएड रहा।इसके बाद सत्र 1994-95 में एम ए प्रथम वर्ष, अर्थशास्त्र व सत्र 1995-96ई0 में एम ए द्वितीय वर्ष/फाइनल, अर्थशास्त्र।इस दौरान भी हम शिक्षण कार्य से भी जुड़े थे।कालेज से आने के बाद सायंकाल को हम एक विद्यार्थी को सांख्यकी में देखते थे।

01जुलाई 1996ई0 से हम नियमित नगर से बाहर एक गांव के स्कूल में नियमित शिक्षण कार्य करने लगे। अभी तक शिक्षक वर्ग हमारे लिए सम्माननीय था।जब हमने स्वयं उस वर्ग में अपना कदम रखा तो नजरिया बदला।


नबम्बर 2002ई0 तक हम विद्याभारती योजना सम्बद्ध विद्यालयों में रह शिक्षण कार्य किए।

इस दौरान अनेक खट्टे मीठे अनुभव रहे। शिक्षण के पहले वर्ष हम परमात्मा गंगवार कक्षा08 ,सुतापा बैरागी कक्षा 08 आदि हमारे प्रिय विद्यार्थियों में से रहे।अगले वर्ष से इस लिस्ट में अन्य नाम और जुड़े-अनामिका मिश्रा जिनमें से प्रमुख थी।जो कक्षा03 में थी।




विद्या भारती योजना के अंतर्गत विद्यालय व्यबस्था से निकल हम डेढ़ वर्ष मखानी  इंटर कॉलेज मुड़िया अहमदनगर बरेली में रहे।इस दौरान हमने अपने को शिक्षण वर्षों के बेहतर स्थिति समय में पाया।

01जून2004ई0 को आदर्श बाल विद्यालय इंटर कॉलेज मीरानपुर कटरा के इंटरव्यू में हम शामिल हुए इस इंटरव्यू की सूचना हमने दैनिक जागरण समाचार पत्र में पढ़ी थी।

हमें शिक्षण कार्य करते अब25वर्ष से अधिक होने को आये हैं।

अशोकबिन्दु भईया: दैट इज...?!पार्ट09









विश्व बंधुत्व, बसुधैव कुटुम्बकम और भविष्य....!!?

परिवार में जब परिवार का आओ ना हो तो क्या होगा एक स्कूल है अनेक क्लास अनेक क्लास है तो इसका मतलब यह नहीं है कि प्रत्येक क्लास के बीच भेद खड़े कर दिए जाएं परिवार भाव का मतलब क्या है परिवार के अंदर संस्था के अंदर कुछ व्यक्ति यदि अपनी मनमानी में रहते हैं तो क्या उनके साथ भेदभाव खड़ा कर दिया जाए या जो चापलूसी हां हुजूरी कर रहे हैं उन्हें सिर पर बैठा लिया जाए परिवार संस्था क्लास में कुछ ऐसे होते हैं जो व्यवस्था बिगाड़ने का ही कार्य करते हैं सहयोगी नहीं होते तो क्या उनसे भेद खड़ा कर दिया जाए उन्हें नजरअंदाज कर सिर्फ अपना टाइम पास किया जाए इसी तरह समाज दे भविष्य समाज देश विश्व में अनेक क्लास अनेक स्तर के व्यक्ति हैं कुछ व्यवस्था बिगाड़ने का कार्य कर रहे हैं हमारा कर्तव्य क्या है अफसोस ए है कि जब मुखिया तंत्र ही सु प्रबंधित ना हो


ऐसे में कल सब्जियों के साथ चलना बड़ा मुश्किल हो जाता है तंत्र बात तंत्र को जकड़ा बैठा व्यक्तित्व ही सुकरात मीरा को जहर ईशा को सूली की व्यवस्था मैं झोंक देता है तंत्र को जकड़े बैठे लोग उनके ठेकेदार शासक सामंत पूंजीपति आदि अंगुलिमाल की गलियों के विरोध में तो खड़े मिल जाते हैं लेकिन अंगुलिमाल ओ को संतुष्ट नहीं कर पाते इतिहास बुद्ध को नायक बना देता है भविष्य बुद्ध को नायक बना देता है जो नायक थे बे खलनायक हमारी खामोशी हमारा मून बोलो ना तो झुनझुना पढ़ो क्यों झुंझला पढ़ें यथार्थ जीने के लिए वर्तमान जीने के लिए सिर्फ खामोशी ही काफी है खामोशी रखकर अपना कर्म करते जाना है हमारा जो स्तर है उस स्तर पर काम करते जाना है तुम्हारे नजर में हमें अपना चरित्र नहीं गढ़ ना है शिक्षित होना स्वयं एक क्रांति हैं बाबूजी महाराज कहते हैं शिक्षित व्यक्ति के लिए कोई अधिकार है ही नहीं कर्तव्य ही कर्तव्य हैं सुकरात आए ईशा आए मोहम्मद साहब आए कभी आए नानक आए ज्योतिबा फुले आए गोपाल कृष्ण गोखले आए हजरत किबला मौलवी फजल अहमद खान साहब रायपुर हाय लाला जी महाराज आए वगैरा-वगैरा जो करना है वह करना है दिल से करना है तुम हमारे साथ खड़े ना हो कोई बात नहीं दुनिया हमारे साथ खड़ी ना हो कोई बात नहीं कुदरत देख रही है सब फैसला हो जाएगा भविष्य में।

21 जून2020 ई0!

सूर्य ग्रहण अनेक जगह सड़कें सुनसान हो गई कल तक कोरोना संक्रमण का भी डर ना था सड़कों पर भीड़ थी बाजार में सब एक दूसरे पर चले जा रहे थे इंसान नहीं जीता है इंसानियत नहीं जीती है गुलामी जी रही है पुरोहित बाद जी रहा है सत्ता बाद जी रहा है सामंत बाद जी रहा है माफिया तंत्र जी रहा है जातिवाद मजहब बाद जी रहा है देश बाद भी जी रहा है लेकिन कब तक कुदरत सब हिसाब किताब करना जानती है।



बसुधैव कुटुम्बकम!

विश्व बंधुत्व!
जगत का कल्याण हो...अधर्म का नाश हो....बगैरा बगैरा।
ये कहने में अच्छा लगता है, बस।


आचरण किधर है ?अरे, वह खिचड़ी है ।  वह कहीं का भी नहीं ।  धर्म धर्म ,हिंदुत्व हिंदुत्व, ईमान ईमान ,खुदा खुदा चीखते सड़क पर उतरने वाले जब जाते हैं तो सिर्फ खून बह सकता है  ।लेकिन वे कुदरत से बढ़कर नहीं हो सकते।

 कमलेश डी पटेल दाजी कहते हैं कोई भी हो सामने । उसे कुदरत का खुदा का वरदान मानो, उसमें अल्लाह की रोशनी जानो ।यदि कोई वैश्या भी हो तो उसे वैश्या नहीं इंसान ही मानो। ए विश्व बंधुत्व आदि की बातें सिर्फ खेल नहीं है ।योग भी क्या है ?अपने विचार ,भाव ,नजरिया, मन प्रबंधन महानता की ओर ले जाना। योग का पहला अंग है -यम।यम मृत्यु है। आचार्य मृत्यु है। योगी मृत्यु है।..... इसे क्या हम आप समझेंगे? अहंकार शून्य हो जाना? जातिवाद - मजहबबाद के खिलाफ उठ खड़ा होना? पूरी दुनिया कम से कम शिक्षित दुनिया जो सिर्फ कर्तव्य जानती है अधिकार नहीं ,हमें प्रसन्नता है कि वह  अब कमलेश डी पटेल दाजी जी की ओर देख रही है। जैसा कि राजनीतिक दुनिया नरेंद्र मोदी की ओर देख रही है ।जो वास्तव में अध्यात्मा, मानवता को दिल से चाहते हैं बे कमलेश डी पटेल दाजी की और देखने लगे हैं। रामदेव बाबा भी अनेक बार कर चुके हैं आखिर सभी को इधर ही आना होगा ।दलाई लामा कहते हैं दुनिया का भला विश्व सरकार ही कर सकती है। विश्व बंधुत्व, वसुधैव कुटुंबकम भावना ही कर सकती है।

कमलेश डी पटेल दाजी इस समय हजरत किबला मौलवी फजल अहमद खान साहब रायपुर  के शिष्य श्री रामचंद्र जी महाराज फतेहगढ़ की याद में 1945 में शाहजहांपुर की धरती पर स्थापित श्री राम चंद्र मिशन हार्टफुलनेस के प्रमुख हैं ।एक खामोश आध्यात्मिक क्रांति  शाहजहांपुर से चलकर 200 देशों में पहुंच चुकी है ।वर्तमान में अध्यात्म की पताका लिए अनेक संस्थाएं चल रही हैं। अब बता रहा है उनका एक मंच पर आने का हम सन 1990 से एक साझा मंच की कल्पना में, प्रार्थना में कोशिश में जी रहे हैं। हमें प्रसन्नता है हम शाहजहांपुर धरती से हैं, उस धरती से जहां श्री रामचंद्र मिशन की स्थापना हुई ।जिसके 75 वर्ष पूर्ण हो चुके हैं। जिस की खास विशेषता है- प्राण आहुति कार्यक्रम अर्थात संस्था संबद्ध स्त्री पुरूषों में प्राण प्रतिष्ठा जैसा कार्यक्रम?
मीरानपुर कटरा शाहजहांपुर से हम श्री जयवीर सिंह, श्री रामदास श्री ,ब्रह्मा धार मिश्र आदि के  साथ इस खामोश आध्यात्मिक क्रांति में आहुतियां लगा रहे हैं। हम इस पर निशांत दास पार्थ, हरि शंकर सिंह गुर्जर, महेश चंद्र मेहरोत्रा, राजीव अग्रवाल,अनूप अग्रवाल, एके सिंह, कविन्द्र सिंह यादव ,प्रियंक गंगवार, हरकरन त्रिपाठी आदि को धन्यवाद देते हैं। की दे हमारे प्रति हमदर्दी रखते हैं, धन्यवाद

अशोकबिन्दु : दैट इज ...?!पार्ट 10

शांति शांति करते हम दक्षेस सरकार व विश्व सरकार का भी सपना देख बैठे।


ये हमारी भविष्य यात्रा का हिस्सा है।

हम कहते आये हैं-हम सिर्फ प्रकृति अंश व ब्रह्म अंश हैं।

प्रकृति व ब्रह्म का असर ऐसे में हम पर स्वाभाविक है लेकिन हम इससे हट कर बनाबटी, कृत्रिम जीवन को जीते हैं।जो  कि यज्ञ/मिशन के खिलाफ है। जगत में मनुष्य को छोंड़ सभी प्रकृति अभियान




अर्थात यज्ञ में जीते हैं।

लेकिन हम इसे कैसे जिएं?

इसे हम महसूस कैसे करें?

ज्योतिष स्वयं क्या है?

अनेक ने इसके विरोध में भी लिखा है।

शब्द कोषों में जितने भी शब्द हैं, निरर्थक नहीं हैं।

हम ये भी कहते रहे हैं कि हम हो या जगत की कोई वस्तु कोई शब्द कोई वाक्य कोई ध्वनि स्वयं जगत या ब्रह्मांड .......उसकी 3 अवस्थाएं है- स्थूल सूक्ष्म व कारण।

ऐसा शब्द के साथ भी है, वाक्यों के साथ भी है।
 शब्द या वाक्य भी के तीन स्तर हैं, तीन अवस्थाएं है-स्थूल, सूक्ष्म व कारण।


इसलिए कमलेश डी पटेल दाजी कहते हैं-इससे फर्क नहीं पड़ता कि आप नास्तिक है या आस्तिक।महत्वपूर्ण है आप महसूस क्या करते हैं?अनुभव क्या करते है?चिन्तन मनन क्या है?नजरिया क्या है?



अपना अदृश्य?


अपना व जगत का अदृश्य भी है,जो सूक्ष्म, सूक्ष्म से सूक्ष्मतर... व  कारण।

हम चौराहे पर आए और दो हजार का नोट सड़क पर पड़ा मिल जाए?हम खुश हो बैठते हैं।मन उछल पड़ता है।


होश आया, तुम्हारे धर्म स्थलों में रुचि नहीं, तुम्हारे जातियों मजहबों में रुचि नहीं । किशोरावस्था में आते ही आंख बंद कर हम जो पाने लगे वह तुम्हारे पुरोहितवाद, सत्तावाद, पूंजीवाद, जाति वाद आदि में न मिले।

अचानक कुछ होता रहा है।आकस्मिक।हमने तो आकस्मिक योग,एक्सीडेंटल योगा को भी महसूस किया है। अचानक कुछ अदृश्य से प्राप्त होना। लेकिन उसे प्राप्त कर उछलना खतरनाक है।



हमारे सभी स्वप्न,कल्पना, अहसास आदि सिर्फ बकबास ही नहीं होते।



आम आदमी ने भी इसे महसूस किया है, अर्द्ध निद्रा में जो देखा वह अगले दिन घटित हो  गया।


पूरे नगर में जब पहली बार परिक्रमा की एक विशेष भाव में तो इसके बाद उस रात ये क्या?



अरे, वो उनका घर है?

ये वो है?

भमोरी रोड पर वहां वो है?

थाना के सामने वहां वो है?

जलालाबाद रोड पर ही फ़ीलनगर नगर में उस मंदिर में वो है?

रामनगर कालोनी में वो अमुख अमुख परिवार है।

अरे, ये क्या?

आतिशबाजान में ये?

हम कक्षा पांच से शांति कुंज साहित्य, आर्य समाज साहित्य, अखंड ज्योति पत्रिका को पढ़ते रहे हैं। पढ़ते कम, चिंतन मनन, कल्पना में ज्यादा लाए...... हमने पड़ा था- हमारा सूक्ष्म जनता है।
आयुर्वेद तो कहता है, हमारे साथ क्या होने वाला है-वह हम छह महीने  पहले ही जान सकते हैं।


इस निष्कर्ष पर विज्ञान भी पहुँचा है।जब से रूस में एक तकनीकी आयी है, आभा मंडल कैच करने की।


और ये क्या?


अर्द्धनिद्रा में-

अर्द्ध निद्रा में एक बार दो यमदूत हमारे समीप से यह कह कर गुजरे, आओ चलो।हम एक दूत का फरसा लेकर चल देते है। एक गली में पहुंच कर एक को आवाज देते हैं।वह बाहर आता है,तो उसे फरसे से मार देते हैं।....ऐसे स्वप्न?!

दूसरे दिन स्कूल जाते वक्त पता चला कि अमुख - अमुख लड़का अपने मित्र के साथ गंगा स्नान पर गया था, एक्सीडेंट में मारा गया।

ऐसे स्वप्न?!

ये क्या है?

ऐसे नगेटिव - पॉजीटिव स्वप्नों ,अहसासों से हमारी रातें भरी है।अब तो ऐसा दिन में  भी होने लगा है।


लेकिन?!


लेकिन ये स्वप्न, अहसास आदि हमारी सफलता नहीं हैं। कोई साधना स्वयं में पूर्ण नहीं है।

भविष्य यात्रा में विकसित कुछ भी नहीं, विकासशील है...... निरन्तर है।



हम तो यही कहेंगे कि अपने किए कुछ कर जाना चाहते हों तो शान्ति को चाहो। चरित्र ये नहीं है, दुनिया की नजर में जीना। दुनिया को बर्दाश्त करते हुए अपना जीवन जीते चलो।


यश - अपयश का हानि......


आज का नायक भविष्य का खलनायक भी ही सकता है।


आइंस्टीन ने कहा है- "कल्पना ज्ञान से भी अधिक महत्वपूर्ण है क्योंकि ज्ञान सीमित होता है, जबकि कल्पना सम्पूर्ण विश्व को समाविष्ट कर लेती है।यह प्रगति को तेज करती है जिससे विकास होता है।"



विद्यार्थी, अभ्यासी, साधक आदि जब शास्त्रीय ज्ञान, पुस्तक विषय, पाठ्यक्रम आदि के तथ्यों को उठाकर कल्पना, चिंतन, मनन में उतरता है वह असीमितता की ओर अपनी चेतना व समझ को बढ़ाने का कार्य करता है।


हमारे व जगत के अंदर,अन्य मनुष्यों एवं जीव जंतुओं के अंदर स्वतः ,निरन्तर है।जब हमारी चेतना व समझ उस ओर बढ़ती है तब हमारी स्थिति सागर में एक लहर की तरह हो जाती है। जो  विभिन्न  लहरों की समीपता के अहसास के साथ पूरे सागर का अहसास करने लगती है। ये स्थिति हमें त्रिकाल दर्शी से जोड़ती है।

ये आध्यत्म से ही सम्भव है।

शांति व मौन में उतरने से सम्भव है।
शांति  बुन बुन हम विश्व शांति, बसुधैव कुटुम्बकम, विश्व बंधुत्व आदि को बुनने लगते हैं।


जातिवाद, मजहब वाद, पूंजीवाद, सामन्तवाद, पुरोहितवाद, धर्मस्थल आदि सबके सब भौतिक सामिग्री, बनाबटी, कृत्रिमताओं आदि नजर आने लगते हैं। हम प्रकृति अभियान/यज्ञ/अनन्त यात्रा के साक्षी हो जाते हैं।


विद्यार्थी या साधक जीवन को ब्रह्मचर्य जीवन मानने का मतलब यही हो जाता है कि हमारी यात्रा अंतरज्योति के साथ शुरू होकर विभिन्न अंतर ज्योतियों व उनके बीच अर्थात विविधता में एकता जैसे एकत्व में प्रवेश कर जाती है।जहां से हम अनन्त यात्रा हम पाते हैं।राजनीति में हमें  विश्व सरकार व विश्व शांति का दरबाजा खटखटाना पड़ता है।विश्व बंधुत्व, बसुधैब कुटुम्बकम का दरवाजा खटखटाना पड़ता है।




शब्द?!

शब्द शोर कब बन जाते हैं?बकबास कब बन जाते हैं?गाली कब बन जाते हैं?शब्द व वाक्य बकबास व अश्लील कब हो जाते हैं?


हमारे स्थूल कब-'बरसात में रेंगती गिजाईयों के झुंड'-जैसा हो जाते हैं?निर्रथक कब हो जाते हैं?औचित्य हींन कब हो जाते हैं?अश्लिल व बोझ कब हो जाते हैं?


बात तो शब्द व वाक्य की हो रही थी।

सुबह सुबह जब आ आंख खुलती है, 'अल्लाह हो अकबर'- की आवाज सुनाई देती है।कहीं किधर से गीता के श्लोक, रामचरित मानस की चौपाइयों आदि की आवाज सुनाई देती है।


ये वाक्य स्वयं में क्या हैं?


इन वाक्यों के पीछे महानताओं का संसार छिपा है।
बस, नजरिया की बात है।नजर कहाँ पर है?


इसी तरह शब्द!


अल्लाह!(अल:)!!

इला:!(इलाहा)!!..........आदि आदि!


भाषा विज्ञान में जाने की जरूरत है।
सूक्ष्म में जाने की जरूरत है।


सूक्ष्म में जब हम उतरते हैं तो समाज के धर्मों की धारणाएं विदा हो जाती हैं। पंथों की सारी धारणाएं विदा हो जाती हैं।


शब्द व वाक्य के पीछे की दशा उजागर होने लगती है।

किसी ने ठीक कहा है, भीड़ का धर्म नहीं होता- उन्माद, सम्प्रदायिकता होती है। जिसके दिल में धर्म व दिव्यता फैलती है वह जमाने के धर्मों, धर्मस्थलों की नजर में भी अलग थलग हो जाता है।


ज्योतिष स्वयं क्या है?

ज्योति+ईष अर्थात ज्योति का प्रतीक/चिह्न!अर्थात संकेत! इसके पीछे की दशाएं या स्थितियां क्या है?


हमारे सभी स्वप्न, कल्पना, अहसास आदि सिर्फ बकबास ही होते।


शान्ति का जीवन में क्या महत्व है?
शांति या खामोशी हम स्वीकार नहीं सकते।

बेटा उछलते हुए कप लेकर आता है।लड़खड़ाता है, कप गिर जाता है.... कप गिर टूट जाता है। हम झल लाए, बिगड़े।चलो, ठीक हैं।
सिस्टम के लिए, व्यवस्था के लिए चिल्लाना भी जरूरी हो सकता है लेकिन किस स्तर पर?


नुकसान?!

हमारा कोई बड़ा भौतिक नुकसान हो जाता है, हम हतास उदास या हिंसा से भर जाते हैं।

शांति या  खामोशी किस स्तर की? किस स्तर पर!!अपने सूक्ष्म व कारण को हम नजरअंदाज कर दें?

सूक्ष्म व कारण की शर्त पर स्थूल को,भौतिकता ओं को नजरअंदाज कर देना ही कुर्बानी है,समर्पण है, स्वीकार्यता है, शरणागति है?तटस्थता है? क्या हम ठीक सोंचते हैं?


आचार्य क्या है?योगी क्या है?योग क्या है?योगांग-यम क्या है?कोई इसका उत्तर देता है- मृत्यु।

क्या कहा?आचार्य मृत्यु है?योगी मृत्यु है?यम मृत्यु है?


हमारे वरिष्ठ व सरकारें शांति के लिए कितना समय व धन खर्च कर रही हैं?

शांति के लिए हम क्या कर रहे हैं?खामोशी के लिए हम क्या करते है?


अपरिग्रह!?


हम अपरिग्रह के खिलाफ खड़े हो गए हैं?

गेट पर ताले लगाने पड़ रहे हैं?हथियार रखने पड़ रहे हैं?  धर्मस्थलों में ही ताले लगाने पड़ रहे हैं?

कहीं तो कुछ गलत हो रहा है?समाज  व धर्म के ठेकेदार क्या कर रहे हैं? हूँ, अहंकार में तो न जाने क्या क्या कर जाते है लेकिन धर्म कहाँ है?



 हमारी व्यवस्थाए,सरकारें, ठेकेदार किस स्तर के है?
अंगुलिमाल की गलियों से वे क्यों डरते हैं?


'एकता में अनेकता, अनेकता में एकता'- के भाव ,बसुधैब कुटुम्बकम के भाव ,विश्व बंधुत्व के भाव व आचरण से मानव प्रबन्धन जुदा है।विश्व का कल्याण हो? विश्व का कल्याण कैसे हो?
सिर्फ विश्व सरकार...

ज्योतिष!?


ज्योतिष की दशा क्या है?


हमारा वेद आत्मा है।

ज्योतिष=ज्योति+ई ष! ज्योति से जब संकेत मिलने शुरू हो जाएं।कब? सागर में कुम्भ कुंभ में सागर.....




आखिर कमलेश डी पटेल दाजी क्यों कहते है -महत्वपूर्ण ये नहीं है कि हम आस्तिक है  या नास्तिक? महत्वपूर्ण है-हम महसूस क्या करते हैं?हमारा आचरण क्या है?

अशोकबिन्दु : दैट इज ...?! पार्ट 11

समाज में नितांत अकेलापन!
किसी ने कहा है-धर्म में भी व्यक्ति अकेला। अधर्म में भी व्यक्ति अकेला।
भीड़ सम्प्रदायों के साथ होती है,जातिवाद के साथ होती है।
समाज व  सामजिकता के बीच पूंजीवाद, पुरोहितवाद, सामन्तवाद, सत्तावाद,जातिवाद, माफिया तन्त्र आदि शान से खड़ा है।

भीम राव अम्बेडकर कहते हैं, देश के अंदर सामाजिक लोकतन्त्र व आर्थिक लोकतन्त्र के बिना राजनीतिक लोकतंत्र भी खतरा है।
एक अपराधी व्यक्ति के साथ उसकी जाति या मजहब का खड़ा होना देश के लिए खतरनाक है। देश में कभी अच्छे दिन नहीं आ सकते।


सन 1947 में देश सैकड़ों देशों के रूप में होता यदि सरदार बल्लभ भाई पटेल नहीं होते। देश व विश्व की राजनीति मानव कल्याण ,मानवता के कल्याण की व्यवस्था समाज व आर्थिक स्तर पर नहीं कर सकती।

समाज व देश के ठेकेदार,कानून के रखवाले माफ़ियावाद, जातिवाद, पूंजीवाद, सत्तावाद, पुरोहितवाद आदि के साथ खड़े हैं।
हम सन 1990-91में पहली बार राजनीति के गलियारे में घुसे लेकिन हम अपने को सन्तुष्ट नहीं कर पाए।



आध्यत्म व मानवता ही से सबका कल्याण है।कमलेश डी पटेल दाजी कहते हैं-मानव का आध्यात्मिक विकास की देश व विश्व को शांति में धकेल सकता है। इसके लिए हमें मानवता व विश्व बंधुत्व से शुरुआत करनी चाहिए।

हम बचपन से ही देखते आये है कि समाज व सामजिकता में मानवता हमेशा मुश्किल में रही है। हमारे लिए पुस्तकें व महापुरुषों की वाणियों को महत्वपूर्ण स्थान रहा है। हमें तो अधिकतर इंसान असुर से कम नजर नहीं आये हैं लेकिन ये आध्यत्म ही है जो हमें जीवन जीना सिखाता है।सभी को प्रकृति अंश व ब्रह्म अंश मान कर एकता व सद्भावना का संकेत मिलता है।


सन1994ई0 के 05 अक्टूबर को पहला विश्व शिक्षक दिवस मनाया जाना शुरू हुआ।उसी वर्ष से हम शिक्षण कार्य से जुड़े और शिक्षक समाज को करीब से जानना ही नहीं महसूस करना भी शुरू किया।विद्यार्थी समाज को तो हम पहले से ही जानने व महसूस करने की कोशिश करते रहे। दोनों समाजों से वास्तव मे मुश्किल से 1.98 प्रतिशत ही रुझान या दिल से या heartfulness education में हैं।मुश्किल से heartfulness teacher या heartfulness student हैं।ज्ञान को कोई नजरिया, सोंच,श्रद्धा व आचरण बनाने का हम प्रयत्न करते रहे हैं।ऐसे में ज्ञान के आधार पर चिंतन, मनन, स्वप्न, कल्पना आवश्यक थी।

समाज में नितांत अकेलापन!
तभी ठीक कहा गया है कि धर्म हो या अधर्म ,इसमें कोई अपना नहीं होता,न कोई पराया।सन्त भी ठीक कहते है, न काहू से दोस्ती न काहू से बैर। बेटा पिता,बेटी मां,पति पत्नी ,स्त्री पुरुष, कुल समाज ,देश विश्व ..........आदि सब व्यवस्था है, प्रबन्धन है जो कि मानव जीवन का सुप्रबन्धनात्मक कर्तव्य है जो कि स्थूलतात्मक है।इससे आगे.... सूक्ष्म व कारण प्रबन्धन भी है। परिवार व रिश्तेदारी स्तर पर भी स्थिति चिंतनीय है।जो रिश्तेदार हमसे अधिक धन दौलत, पद आदि से ऊंचे हैं वे हमारे दरवाजे पर आना तक पसन्द नहीं करते या फिर वे अधर्म, अमानवता,गैरकानूनी हरकतों, लोभ लालच,भेद, मतभेद आदि का वातावरण बनाने का प्रयत्न करते हैं।अपराधी व्यक्ति के पक्ष में खड़े दिखते है।

अशोकबिन्दु: दैट इज....?! पार्ट 12









अतिसंचय प्रकृतिनाश,विश्वासहीन प्रकृति यज्ञह ।

योगांग प्रथम यमदूत, ससम्मान धर्म - अपरिग्रह   ।।


कुल- जाति- देशस्य सदस्य ,नास्तिक चोरह ।

योगांग प्रथम यमदूत, ससम्मान धर्म अस्तेयह।।



अति संचय प्रकृति नाश है, प्रकृतियज्ञ में अविश्वास है।


योग का प्रथम अंग यम का एक दूत अपरिग्रह सम्मान सहित धर्म है।।



कुल जाति देश के सदस्य का चोर नास्तिक है।

योग का प्रथम अंग यम का एक दूत अस्तेय  सम्मान सहित धर्म है।।


इसके साथ...



हम सपरिवार सन2019ई0 के प्रथम सप्ताह सपरिवार श्री रामचन्द्र मिशन, शाहजहाँपुर आश्रम में थे।



हम दोनों पति पत्नी प्रशिक्षण में थे। इससे पहले भी हम हार्टफुलनेस के एक प्रशिक्षण में रह चुके थे।अंदुरुनी हालात अच्छे हो चुके थे।शरीर व मन बड़ा हल्का व बोझमुक्त लगता था।जैसे हवा में उड़ता हो, पीछे से कोई धकेलता हो।हमारा कोई बल न लग रहा हो।जैसे पहाड़ से जब नीचे उतरते हैं।


25दिसम्बर2014ई0 को हमने सपत्नी श्री रामचन्द्र मिशन में  अपनी प्राणाहुति/प्राण प्रतिष्ठा करवायी।।इसके साथ ही हम विश्व बंधुत्व, वसुधैब कुटुम्बकम, विश्व सरकार,सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर, न काहू से दोस्ती न काहू से बैर.... की भावना से मजबूत हुए। ऐसे में जाति मजहब के नाम पर आचरण, भीड़ हिंसा के खिलाफ भावना और तेज हुई।




अभी हम मामूली से इंसान हैं।इस लिए अभ्यासी हैं।


बाबूजी महाराज ने एक अच्छा नाम दिया है हम सबको हम सब अभ्यासी ।

हम किसी के शिष्य नहीं है ।

उन्होंने अपने को गुरु भी नहीं माना। हम किसी के शिष्य कैसे हो सकते हैं ?शिष्य कौन है?


 शिक्षा और गुरु दो शरीर एक जान होते हैं।


हा - हा- हूस # पार्ट01!!1993ई0 -----अशोकबिन्दु

 हा - हा- हूस # पार्ट01!!1993ई0 -----



------------------------------------------- इस वक्त अशोक की अवस्था रही होगी लगभग 12 बरस के आसपास ,जुलाई का पहला सप्ताह था सन उन्नीस सौ 84 का ।


उसने कक्षा 4 अब पास कर लिया था और अब कक्षा 5 में आ गया था ।


मकान की छत पर पूर्व की ओर उत्तर के कोने पर एक छोटे से कमरे के सामने छोटा सा एक छप्पर पड़ा था। बरसात का मौसम था ।आसमान पर बादल छाए हुए थे ।अशोक छप्पर के नीचे चारपाई पर लेटा हुआ  छप्पर ताक रहा था । जब बरसात के पानी की फुहार चारपाई पर आने लगी तो उठ कर वह चारपाई अंदर सर का लेता है और बैठकर सामने दीवार पर लगे अखबार के एक पृष्ठ को देखने लगता है। उस पर एक उड़नतश्तरी का चित्र था.... कुछ समय पश्चात वह विद्यालय में विज्ञान के एक बेला अर्थात क्लास पीरियड विज्ञान आचार्य की बातों में खो गया । क्लास में बच्चों की 3 लाइनें थी मध्य की लाइन के मध्य में अशोक एक सिख के पीछे बैठा था ।

अशोक की निगाह श्यामपट्ट के मध्य मे थी।


 "उड़न तश्तरी आकाश में उड़ने वाले उस यान को कहते हैं जो यदा-कदा आकाश में देखे गए हैं उड़नतश्तरी रूपी यान को देखकर वैज्ञानिक लोगों ने निष्कर्ष निकाला कि यह उड़न तश्तरी रूपी यान अवश्य दूसरी पृथ्वी के और आ जाते हैं।" 


 दीपक बीच में बोल पड़ा-" लेकिन आचार्य जी क्या उड़न तश्तरियों को यहां के लोग पकड़ नहीं पाए अभी । " 


 "नहीं, ऐसी सूचना नहीं-ज्ञान नहीं मुझे।जानकारी कर बताऊंगा।"


 तब अनुभव बोला- "लेकिन आचार्य जी एक कॉमिक्स में तो.......।" बीच में ही राजीब बोल पड़ा- "अरे, कॉमिक्स तो काल्पनिक होती है।"  

"अच्छा शांत बैठो आप लोग अब!"


 सब व्यवस्थित हो जाते हैं।


अशोक को नीचे सिर किए बैठे देख कर आचार्य बोले-"अशोक!क्या नींद आ रही है?" "न .... नहीं !"


अशोक सिर उठाते हुए बोला। "अशोक अब कल्पनाऐं करना सीख गए हैं, आचार्यजी।" 


 " दीपक ने अभी कुछ समय पहले पूछा था कि क्या इन उड़नतश्तरियों को यहां लोग पकड़ नहीं पाए तो सुने आप लोग ।अमेरिका का नाम सुना ही होगा आपने । वहां एक स्थान है न्यू मैक्सिको। सन 1947 के 15 जून की रात थी। एक अंतरिक्ष वैज्ञानिक वैज्ञानिक, 14 जून को न्यू मैक्सिको के दो स्थानों पर दुर्घटनाग्रस्त हुई उड़नतश्तरी आ गिरी थी -उसी पर वह चिंतन कर रहा था कि एकाएक अपने सामने एक 3 फुटा व्यक्ति को देख कर चौक उठा ।उसके शरीर पर बिल्कुल बाल न थे ।न ही भव्  पलकों के बाल । उसके कान भी न थे । अंतरिक्ष वैज्ञानिक अद्भुत व्यक्ति को अपनी ओर आते देख खड़ा हो गया । अंतरिक्ष वैज्ञानिक को तब आश्चर्य होता है कि जब वह अद्भुत व्यक्ति उस अंतरिक्ष वैज्ञानिक से कहता है कि हमारे साथियों का एक यान यहां दुर्घटनाग्रस्त हो गया है जिसमें दो लोग जीवित थे संभवतः उन सबको आपकी सेना ले गई मेरी मदद करो ।"



 और फिर... मैं (लेखक) इस वक्त इस घटना को एस एस कालेज, शाहजहांपुर के बीएड विभाग के सामने फील्ड में बैठा कुछ लोगों के घेरे हरी घास पर बैठे बता रहा था।सन1994ई0 का नवम्बर माह था।  



तो फिर..... वह अंतरिक्ष वैज्ञानिक उस अद्भुत व्यक्ति से बोला-"आप हमारी भाषा जानते हैं?" 


 तब वह अद्भुत व्यक्ति बोला- दरअसल ये सब हमारे विज्ञान व अंतर स्थिति के विकास का परिणाम है।" 


 अंतरिक्ष वैज्ञानिक ने उसे सहायता देने का आश्वासन दिया तो वह अद्भुत गंठा व्यक्ति उस वैज्ञानिक के आवास पर ही रुक गया। सुबह उसके पास एक व्यक्ति आया और बोला कल एक उड़नतश्तरी गिरी थी पास जाकर देखा तो चार छोटे प्राणियों के शरीर पड़े थे तो की सांस चल रही थी दो मैं कोई हरकत ना थी और एक उनका उपचार कर रहा था लेकिन सेना आकर उन सब को ले जाती है उड़नतश्तरी के मलबे को लेकर और मुझसे कहा जाता है की मैं सब कुछ भूल जाऊं व्यक्ति की इस बात से अंतरिक्ष वैज्ञानिक सोच में पड़ गया लेकिन शायद सेना जान गई थी कि उस अधिकारी के आसपास यह आवास पर दूसरे ग्रह का एक प्राणी रह रहा है तो सेना बहाकर उस प्राणी सहित अंतरिक्ष वैज्ञानिक को ले गई दूसरे दिन बहे अंतरिक्ष वैज्ञानिक अपने घर पर आकर 2 दिन तक रहा इसके बाद उसकी बालू या दुर्घटना में मृत्यु हो गई। डब्लू डब्लू ब्रेंजल(मैक) का अपना भेड़ों का फार्म। भेड़ों को ढूंढता ढूंढता वह काफी दूर निकल गया तो उसकी निगाह रबड़ लकड़ी टिन की अनेक वस्तुओं पर पड़ी, जिसे उठा कर वह अपने आवास पर ले गया।यह सन 1947 की चौदह जून का ही समय था। पांच जुलाई को वह एक नगर कोरोना पहुंचा तो उसे खबर मिली कि 24जून को कैनेथ आर्नोल्ड नामक पायलट ने वाशिंगटन स्थित कैस्केड पर्वत माला के ऊपर 1900किमी प्रति घण्टे की रफ्तार से उड़ती हुई उड़न तश्तरी नुमा यान दिखाई दिए। इस खबर को पाने के बाद ब्रेजल ने रौसवैल के पुलिस अधिकारी जार्ज विलकाक्स को सारी बात बतायी कि उसने अपने फार्म पर यह बस्तुएं देंखी। विलकाक्स ने सीधे रौसवैल स्थित वायुसेना कार्यालय में सम्पर्क साधा। वहां उपस्थित 509वीं टोली के मुखिया मेजर जैसी मार्सेल अपने सहयोगियों के साथ ब्रेजल के घर पहुंचे।जहां उन्होंने उड़न तश्तरियों के मलबे को देखा। उस मलबे को ले मार्सेल अपने घर आ गए। मार्सेल का दस वर्षीय पुत्र -जैसी जूनियर! वह इस वक्त लोगों की नजर में नींद में था।लेकिन वह उड़न तश्तरियों को लेकर कल्पनाओं में खोया हुआ था। मार्सेल उसे जगा कर उड़न तश्तरी का मलबा दिखता है। बड़ी ध्यान से जैसी जूनियर अपने पिता की बात सुन रहा था। अब जूनियर जैसी पैतालीस सैंतालीस वर्ष का होगा। दीपक बोला- "क्या वह अभी जीवित है?" "हां, वह इस वक्त जीवित है।" अशोक के आगे बैठा सिक्ख छात्र सिंदर सिंह बोला- "....और वो मार्सेल?" "वो भी अभी जिंदा है।लेकिन यह सब आप लोग क्यों पूछ रहे हो?-मुस्कुराते हुए आचार्य बोले। तब सिंदर सिंह पीछे मुड़ अशोक की ओर देखते हुए बोला-"अशोक को जो मिलना है अब उनसे।" तो सब छात्र छात्राएं हंस पड़े, कुछ को छोंड़ कर। घण्टी लग गयी। जब आचार्य क्लास से चले गए तो सब बातचीत करने लगे।


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हा - हा -हूस?!


अंतरिक्ष में क्या कोई ऐसी धरती भी हो सकती है जहां  डायनासोर व अन्य विशालकाय जानवर है?


सर जी कहते थे-हां, ऐसी धरती है।हमने उस धरती को नाम दिया है- 'हा-हा-हूस'।


26 जुलाई 2021ई0! समय लगभग 10.40pm!! विभिन्न विषयों से एम ए फाइनल की एक पेपर की परीक्षा के बाद परीक्षार्थी कमरों से बाहर निकल आये थे।


"सर जी-सर जी!"- कुछ परीक्षार्थियों ने एक युवक को घेर लिया।


"नमस्ते सर!"


"नमस्ते!"


"नमस्ते सर!"


"अच्छा,पहले बाहर निकलते हैं।"


आगे चल कर सब मौखिक परीक्षा की जानकारी लेने आफिस जा पहुंचे।


मिस्टर एस की पत्नी..?!



 मिस्टर एस की पत्नी..?! 


 दीवार पर लगे अखबार पृष्ठ से निगाह हटाकर अशोक फिर चारपाई पर लेट जाता है। वह बाहर देखता है- बरसात काफी तेज हो चुकी थी। वह पुनः ख्यालों में पहुंच जाता है- विद्यालय से आकर खाना खा अशोक ऊपर छत पर पहुंच गया था। खुले आसमान के नीचे छत पर पड़ी चारपाई पर बैठते हुए अशोक ने सरसरी नजर से बायीं ओर यानी कि दक्षिण की ओर विशाल मैदान में देखा - कमरख के पेड़ के नीचे कुछ बच्चे खेल रहे थे। वह आचार्य जी की बात पर सोचने लगा -- "दूसरे दिन अंतरिक्ष वैज्ञानिक घर पर आकर 2 दिन ही घर पर रह पाया था की उसकी वायुयान दुर्घटना में मृत्यु हो जाती है । लेकिन कहीं ऐसा तो नहीं कि उस अंतरिक्ष वैज्ञानिक की हत्या की गई हो?" फिर हाथ में टार्च ले वह अंतरिक्ष वैज्ञानिक अपने फार्म में बने दो कमरे की एक बिल्डिंग के सामने बगीचे में था कि एकाएक उसकी निगाहें जब सामने जाती हैं तो वह आश्चर्य में पड़ जाता है । वह सोचने लगा क्या गिरा होगा ? वहां कहीं ऐसा तो नहीं कि उड़न तश्तरी या फिर...?! फिर वह आगे उधर ही चल दिया लेकिन रुकते हुए, किसी को बुला लूं क्या ? कुछ समय वह खड़ा रहता है लेकिन फिर अकेले ही चल देता है। आगे जा कर देखता है तो सामने वही था जो उसने सोचा था। एक उड़न तश्तरी अव्यवस्थित... वहां वह छोटे छोटे 3 प्राणी देखता है। जो जमीन में पड़े थे बे या तो संभवत बेहोश थे या मर चुके थे । पहले उसके पास बढ़ने प्रति वह सहमा लेकिन फिर उन तीनों को देखा तो एक जीवित था । उसे उठा ही पाया कि वायुसेना का एक हेलीकॉप्टर कहां उतरा और .... "मिस्टर एस ! लोगों को इस घटना की जानकारी नहीं होनी चाहिए ।" अंतरिक्ष वैज्ञानिक मौन ही रहा। कुछ सेकंड बाद ही वहां सेना की गाड़ी आ गई और उन तीनों प्राणियों के साथ क्षतिग्रस्त उड़नतश्तरी भी ले गई। अंतरिक्ष वैज्ञानिक खामोश हुए देखता रहा फिर वहां से चलकर बिल्डिंग में वापस आ गया । चपरासी बोला - "वो लोग कौन थे?" बरामदे में जाकर कुर्सी पर बैठकर वह बोला -"सब बता दूंगा दरअसल वायु सेना में कुछ प्रयोग चल रहा है। हां,तुम्हारी बीवी की हालत कैसी है?" " अभी कहां ठीक है साहब !साहब, कल और छुट्टी दे दो ?" "ठीक है। तेरी बीवी ठीक हो जाए तो बच्चों सहित उसे यही ले आ।" यह घटना अंतरिक्ष वैज्ञानिक की मृत्यु से लगभग 3 माह पहले घटी थी।

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 सूर्य उदय हो चला। 
 अंतरिक्ष वैज्ञानिक अभी बरामदे में कुर्सी पर बैठा था । 
चपरासी आकर बोला- " साहब !क्या? क्या रात भर नहीं सोए? आधी रात को मैंने देखा था आप यूं ही बैठे थे और अभी 2 घंटे पूर्व भी?"

 " जाओ मेरे लिए काफी ला ।"
 "जी साहब ।" 
 फिर वह अंतरिक्ष वैज्ञानिक सोचने लगा- सेना उन तीनों को ले गई क्षतिग्रस्त उड़नतश्तरी सहित । लेकिन इस पब्लिक से क्यों छिपाना ? 
 "साहब, काफी ।"
 "बहुत जल्दी ले आये?" 
 " पहले से ही बनने को रखी थी।"
 " आज मेरी बीवी आने को यहां, अच्छी व्यवस्था कर देना ।" "जानकारी है साहब ।" 
 वह अंतरिक्ष वैज्ञानिक अर्थात मिस्टर एस फिर काफी पीने लगा। सुबह बीत गई दोपहर होने को आई, दोपहर बीत गई। अब शाम होने को आई तो पत्र को लिफाफे में पैक करते करते मिस्टर एक्स सोचने लगा कि आज सुबह मेरी बीवी आने को थी लेकिन आई नहीं फिर लिफाफा ले उठ बैठा और तब अपने नौकर को देख-
" ड्राइवर से कह गाड़ी तैयार करें। शहर चलना है।" 
 एक कमरे में जाकर वह किसी को फोन करता है। 
 मिस्टर एस गाड़ी पर बैठते हुए नौकर से- " बीवी घर आए तो कह देना कि शहर गए हैं। आधी रात तक आ जाएंगे ।"
 "जी साहब ।" 
 फिर नौकर जाती गाड़ी को कुछ समय तक देखता रहा। 
 नौकर जब वापस आया तो फोन की आवाज सुनते तेजी से जा फोन उठा लिया और --"क्या?" वह चौंकता है। 
 "साहब तो शहर गए हैं।" फिर डायल घुमा नौकर और कहीं फोन कर देता है।
 @@@@ @@@@@ @@@@@ 

 मिस्टर एस की गाड़ी शहर में प्रवेश कर चुकी थी।
 ..कि एक होटल समीप एक व्यक्ति रुक कर सूचना देता है-" मिस्टर एस!आपकी बीवी का अपहरण हो गया है।" 
" क्या?!"
 तो वह ड्राइवर से गाड़ी पुलिस स्टेशन ले चलने को कहता है और अब कुछ मिनटों के बाद गाड़ी पुलिस स्टेशन पर थी। 
 गाड़ी से उतर अंदर जाने पर- " आइए मिस्टर एस! मुझे दुख है कि आपकी वाइफ का अपहरण हो गया।" 
 मिस्टर एस मौन ही रहा,कुर्सी पर बैठ गया। 
 पुलिस स्टेशन पर लगभग एक घंटा बैठने के बाद जब मिस्टर राज चल दिया तो- " कहां चल दिए मिस्टर एस?" 
 " मकान पर जा रहा हूं ।"
" मकान पर ? सारा मकान पुलिस के अंडर में। आप न जाए तभी ठीक है। कोई सबूत है वहां तो ...?!" 
 मिस्टर एस सिर्फ मुस्कुरा दिया। 
 स्टेशन से बाहर आकर वह गाड़ी में बैठ गया।
 गाड़ी शहर की सड़कों से होते हुए शहर से बाहर निकल गई। फिर 1 घंटे के सफर के बाद मिस्टर एस अपने मकान के सामने था। मिस्टर एस ने देखा वहां पुलिस तैनात थी।
 जब वह आगे बढ़ा तो- " साहब,सॉरी.... मैं अंदर नहीं ....!" 
 "आप जाने दे। सारी जिम्मेदारी मैं अपने पर ले ले लूंगा यदि मेरे घर में प्रवेश पर कोई ...।" 
 एक डायरी में तीन चार वाक्य लिख कर, नीचे अपने साइन कर मिस्टर एस मकान में प्रवेश कर जाता है। अंदर पहुंचकर मेज पर गुलदस्ते के नीचे एक छोटा सा अपनी बीवी का फोटो उठा उसे देखने लगता है फिर- " तुमको कुछ नहीं होना नहीं होगा यह मैं विश्वास करता हूं ।" कि एक कमरे में किसी की उपस्थिति एहसास उसी चौका देता है। तो तेजी से वह कमरे की ओर दौड़ता है लेकिन कमरे में कोई नहीं। वह इधर-उधर निगाहें दौड़ आता है तो स्टोर रूम के दरवाजे की हिलन को देख तेजी से स्टोर रूम का दरवाजा खोलता है तो- 

 "आ आ हा...! " बह चौक जाता है। 

 अपनी बीवी को घायल अवस्था में देख..!? अपनी बीवी को तुरंत उठाता है। वह अभी जीवित थी। ....और बाहर चल देता है। इसी दौरान वह कहीं दो फोन भी कर देता है। एकाएक ना जाने फिर क्यों वह कमरे में इधर-उधर और दीवारों पर निगाह दौड़ आता है? जब मकान से बाहर अपनी घायल बीवी के साथ मिस्टर एस को निकलते देख तब सारी पुलिस और लोग चौक जाते हैं। तुरंत पुलिस दौड़ कर उसकी बीवी को गाड़ी में डाल हॉस्पिटल की ओर चली जाती है। 
सरसरी नजर वहां तैनात पुलिस पर डालकर मिस्टर कहता है- " थोड़ी देर में हां अंतरिक्ष अनुसंधान कर्ता आने वाले हैं।" 
 " अंतरिक्ष अनुसंधान कर्ता?" 
 " हां, तुम्हें आश्चर्य हो सकता है लेकिन हमें नहीं।" 
 फिर मिस्टर एस वहां से चल देता है और गाड़ी पर जाकर बैठ ड्राइवर से-
" हॉस्पिटल की ओर चलो।"
 " जी साहब ।"
 हॉस्पिटल जब पहुंचे तो खबर मिली- उसकी बीवी गुजर चुकी है। दूसरे दिन अमेरिका के सारे न्यूज़ पेपर ने मिस्टर एस की बीवी के अपहरण और मिस्टर एस के घर में ही उसके बीवी पर कातिलाना हमला एवं मृत्यु की खबर को विशेष महत्व दिया था । साथ में इस बात का भी जिक्र किया था कि मिस्टर एस के मकान में विशेष मशीन यंत्रों ने दूसरे ग्रह के प्राणी के आगमन के भी संकेत दिए हैं। @@@@ @@@@@ @@@@@


मिस्टर एस की बेटी?!

 अमेरिका का एक प्राइमरी स्कूल!!
जहां अंतरिक्ष वैज्ञानिक मिस्टर एस की बेटी  जो लगभग पांच-छः साल की रही होगी।
कुछ बच्चों के बीच-
"तेरे तो पिता अंतरिक्ष वैज्ञानिक है।वायुसेना में अधिकारी भी हैं।तू तो चाहे तू अंतरिक्ष विज्ञान की स्टडी के लिए सब कुछ जुटा सकती है।"
"स्टडी के लिए जुटाना क्या?हम सब बड़े होकर अंतरिक्ष विज्ञान के विद्यार्थी बन सकते हैं?अमेरिका में क्या दिक्कत?"

एक बालक बोला-
"हम तो पुनः इंडिया जा रहे हैं?डैडी कह रहे थे/वहाँ सब नए सिरे से शुरू करना होगा।हो सकता है कि खेती पर ही निर्भर रहना पड़े।इंडिया की एजुकेशन बुरी हालत में है।गरीब अच्छी शिक्षा नहीं पा सकते।सरकारी स्कूलों की तो.....?!"

"इस धरती पर ......!?"

"क्या?"

"मैं सोचती हूँ।कुछ लोग क्यों छिपाते हैं कि एलियंस हैं?वही ब्रिटेन का विदेश विभाग व वायुसेना में यह लिखित है कि एलियन्स इस धरती पर आक्रमण भी कर सकते हैं।"
"क्यों ...क्यों --क्यों?आखिर क्यों?"

"इस धरती के मानव की करतूतें ही ऐसी है जिसका असर पूरे ब्रह्मांड पर पड़ रहा है।"

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बहगुल नदी पर स्थित एक कस्बा-मीरानपुर कटरा।
जहां के एक समाजसेवी व शिक्षा विद महेश चन्द्र महरोत्रा की एक फेसबुक पोस्ट पर 'सर जी' ने लिखा था।वह पोस्ट एलियन्स सम्बंधित थी।
                " अंतरिक्ष की अन्य धरती पर एलियन्स हैं।इसके प्रमाण हैं।पुरातत्व विभाग भी इस ओर संकेत करता है। विश्व के कुछ वन्य समाज भी स्पष्ठ करते है,जैसे कि भूमध्य सागरीय क्षेत्र के कबीले अब भी मानते हैं कि हमारे पूर्वज दूसरी धरती से आये थे।जो मत्स्य मानव थे। पुरात्व विभाग उन्हें मातृ देवी भी मानता है।अनेक खण्डहरों में इसके अवशेष मिले हैं।सिंधु सभ्यता, जापान, साइबेरिया आदि में जो मूर्तिया मिली है या गुफाओं आदि में चित्र मिले हैं वे एक ही वेश भूषा व अद्भुत हेलमेट पहने हुए हैं।मध्य अमेरिका में मय/माया सभ्यता, पेरू सभ्यता में ऐसे अवशेष मिले है। अब तो कुछ पुरात्व विद यहां तक कहने लगे हैं कि माया सभ्यता की जड़ें दक्षिण भारत में मायासुर व उसके लिखित एक पुस्तक से सम्वन्धित मिलती है।इस पुस्तक में इमारतों के निर्माण की जानकारिया मिलती है। भारतीय पुराणों में यानों के प्रकरण दक्षिण भारत से ही सम्वन्धित है। हम एक लेख में लिख चुके है, हर क्षेत्र स्थूल इतिहास में बदलाव होते रहते हैं लेकिन सूक्ष्म जगत में इतने जल्दी बदलाव नहीं होते।दक्षिण गोलार्ध को हम एक ही सूक्ष्म इतिहास से आदि इतिहास से जोड़ते हैं।दक्षिण अमेरिका हो या दक्षिण अफ्रीका या दक्षिण भारत ,जावा सुमात्रा आदि का आदि इतिहास की जड़ एक ही है।दक्षिण भारत के पठार काफी पुराने है।एक स्थान पर तो डायनासोर के भी अबशेष मिले हैं।हम तो दक्षिण पठार को हिमालय से भी पुराना मानते है।#प्रवीणमोहन पुरातत्वविद जिनका काम सिर्फ विश्व के प्राचीन खण्डहरों आदि पर शोध करना ही है का कहना है कि दक्षिण पठार के आदिबासी एलियन्स से सम्बन्ध थे। दक्षिण पठार का काफी महत्व रहा है हर यंग में।गुजरात से लेकर श्री लंका तक अब भी ऐसे आदिबासी है जो अपना पूर्वज हनुमान व मतंग ऋषि को मानते हैं।पवन देव अर्थात हवा तत्व की स्थितियों में भी यौगिक प्रशिक्षण व सूक्ष्म व चेतनात्मक सम्बन्ध रखने वाले योगी व ऋषि आदि दक्षिण से ही सम्बन्ध रखते हैं। भविष्य में भी दक्षिण पठार का बड़ा महत्व होगा।वहाँ काम जारी है।हर युग में जारी रहा।किसी को दिखाई न दे, यह अलग बात। आधुनिक विज्ञान के अनुसार हिन्द महाद्वीप एक केंद्र है।इसरो, चांदी पुर प्रक्षेपास्त्र, उच्च तकनीकी का गढ़ बंगलौर आदि वहीं से आते है। कुछ सन्तों का तो कहना है कि आने वाले प्रलय में दक्षिण का पठार एक टापू के रूप में बदल जायेगा।अनेक समुद्री तट व शहर डूब जाएंगे।उत्तर भारत व दिल्ली,दिल्ली से पश्चिम की स्थिति बड़ी भयावह हो जाएगी।बिहार, बंगाल जल प्रलय से पहले से ही परेशान रहता है। वर्तमान सृष्टि में अब भी सूक्ष्म अभियानों का उत्तरी ध्रुब है हिमालय व दक्षिणी ध्रुब है दक्षिण का पठार। श्रीरामचन्द्र मिशन शाहजहांपुर का वैश्विक केंद्र कान्हा शांति वनम बन चुका है।जहां विश्व का सबसे बड़ा मेडिटेशन हाल भी बन चुका है।जहां बाबा रामदेव ने कहा कि भबिष्य में जो बदलाव की आध्यत्मिक बयार बहेगी यहीं से बहेगी।जो दुनिया के हर देश में खामोशी से कार्य कर रहा है।"

       एस एस कालेज, शाहजहांपुर के प्रांगण में कुछ परीक्षार्थी चर्चा कर रहे थे।

"वो बिंदु सर।"
एक लड़का हंस पड़ा-"अब भी एमए- चैमे की परीक्षा देते रहते हैं।यह पढ़ता तो बहुत है लेकिन कम्पटीशन का कभी नहीं पढ़ता।"

"तुम्हे क्या?सबका जीवन जीने का तरीका अलग अलग होता है।"
"इनकी कल्पनाओं का..."
"हां, इनका पूर्ण विश्वास है कि एलियन्स हैं।"
"एक ब्लॉग पर काफी लिख भी रखा है।"
"हां।"
फिर-
भविष्य कथांश पर एक जगह!?
   भुम्सनदा  के बर्फीले भूभाग पर एक ब्रह्म शक्ल-'यलह'।
"यलह आर्य!तुमको इस धरती की ओर से मिशन का चीफ बनाया गया है।कल्कि अवतार को हालांकि अभी सैकड़ों वर्ष हैं लेकिन इससे पूर्व देवरावन के अंत के लिए....।"

 "  कल्कि अवतार का संबंध देव रावण के अंत से विधाता जिसके हम सब अंश हैं अर्थात जो चेतना हम सब में तथा सभी भर्तियों के प्राणियों में समाहित है उस चेतना पर देव रावण दखलअंदाजी कर रहा है हमें आश्चर्य है  " 

एलह आर्य!चेतना का स्थूल शरीर धारण कर स्थूल प्रकृति परिस्थितियों से उलझना स्वाभाविक है लेकिन कल के अवतार के लिए स्थूल और प्रकृति से मोक्ष प्राप्त है चेतना अंशु की बहुत का चाहिए।"


 "पृथु महि पर वह हफ़क़दम को क्यों ले गयी है?विधाता के त्रि अंश अवतारों में से एक शिव के लोक से चेतना अंशों में इस वक्त हफ़क़दम में मोक्ष प्राप्त यलह चेतनांश है।हफ़क़दम को विभिन्न स्थूल व प्राकृतिक स्थितियों का अध्ययन आवश्यक है।
  इधर पृथु महि अर्थात इस पृथ्वी पर-

  एक विशाल काय चट्टान ?जिस पर मत्स्य मानव की दीर्घाकार प्रतिमा बनी हुई थी। जिसे देख कर तीन नेत्रधारी बालक हफ़क़दम युवती से बोला-
"क्या साईरियस अर्थात लुन्धक से ही आया था मत्स्य मानव?"
"मत्स्य मानवों का मूल निबास लुन्धक ही था।वहीं से...?!"
  "था........!?क्या अब है नहीं?"

"इस ओर फिर कभी बताऊंगी,हफ़क़दम! अनेक चेतनांश के समूह से विधातांश पदेन ब्रह्मा-विष्णु-महेश व पदेन अग्निदेव के सहयोग से लुन्धक के एक निबासी बालक को दिव्य शक्तियां दे मत्स्य अवतार के रूप में इस धरती पर भेजा गया था।"

 सागर की ऊंची ऊंची लहरें मत्स्य मानव की प्रतिमा को स्पर्श कर वापस लौट जाती थीं।

             @@@@   @@@@    @@@@@

और.......

अमेरिका का एक प्राइमरी स्कूल!!
सन1945-46 का वक़्त सम्भवतः!!


सुबह सुबह विद्यालय के एक आया की नजर जब न्यूज पेपर पर पड़ी तो वह उस पांच-छह वर्षीय बच्ची के पास जा पहुंची। और- न्यूज पेपर में छपे मिस्टर एस के बीबी के फोटो को दिखा-
"क्या यह तेरी मम्मी का फोटो है?"
 "हां।"-लेकिन फिर इसी के साथ वह बच्ची बेहोश हो गयी।तब सारे विद्यालय में हलचल बढ़ गयी।और अनेक ने आया को डांट भी लगायी।मिस्टर एस की उस बेटी को हॉस्पिटल में एडमिट करा दिया है।दूसरे दिन जिसका हॉस्पिटल से अपहरण हो गया। धीरे धीरे समय बीता। मिस्टर एस की पत्नी, जो एक पत्रकार थी की हत्या एवं पुत्री के अपहरण का कोई सुराग नहीं लगा। अब फिर सन 1947 के पन्द्रह जून की रात! मिस्टर बरामदे में कुर्सी पर बैठा ख्यालों में डूबा था। कल न्यू मैक्सिको में गिरी दो उड़नतश्तरी या एवं उनके साथ के वे प्राणी अंतरिक्ष अनुसंधान कर्ताओं के लिए आगे बढ़ने को कारगर सिद्ध हो सकते हैं लेकिन अचानक मिस्टर के सामने खड़े गैर पृथ्वी के 3 फुट प्राणी को देखकर मिस्टर चौका। 

 इधर बालक अशोक अपने मकान की छत पर पड़ी चारपाई पर लेटा ख्यालों में डूबा था। उसे एक दूसरा बालक आकर झकझोरता है तो अशोक उठता है और -
"अरे ,दीपक तुम ?!" 

 फिर वह चारपाई पर से उठ बैठा।

 " चलो अशोक।" 

"... हो कहां ?!" 

 "स्कूल में,मनोज के पास चलता हूं।" 

 फिर अशोक उठ बैठा। मनोज अशोक और दीपक के क्लास का ही एक छात्र था जो स्कूल यानीकि हरित क्रांति विद्या मंदिर में ही अपने भाई बहन के साथ रहता था। कुछ समय बाद जब अशोक दीपक के साथ हरित क्रांति विद्या मन्दिर पहुंचा तो गेट पर रुकते ही -

"जाओ दीपक, तुम ही मनोज को बुला लाओ मैं यहां खड़ा हूं ।"

  फिर उसने अपनी निगाहें गेट के ऊपर के बोर्ड पर लगा दी। ऊपर लिखा था-

" हरित क्रांति विद्या मंदिर,हरित नगर, बीसलपुर (पीलीभीत) 26 2201" 

 कुछ समय बाद ही दीपक आकर बोला - 
"अशोक ! मनोज को तो उसके पापा उसे गांव लेकर गए हैं।"
 अशोक पश्चिम की ओर चल दिया। 
 दीपक बोला -"अशोक ,क्यों नहीं यहीं रुके?!" 

 अशोक 'न' के जवाब में गर्दन हिला देता है तो दीपक भी उसके पीछे चल देता है। 

आगे बरगद के नीचे आकर अशोक रुक गया और सिर पर दोनों हाथ रख कर देखने लगा-

 " मिस्टर एस की पुत्री एक गैर पृथ्वी यहां पर सवार थी। वह यान धीरे-धीरे हा-हा- हूस धरती की ओर बढ़ा, वह धरती जिस पर डायनासोर के समकक्ष विशालकाय जीव जंतु निवास करते हैं। कुछ घंटों पश्चात ही वह यान हा-हा - हुस धरती पर उतर गया और यान से एक तीन नेत्र धारी 11 फुटा व्यक्ति उस लड़की को लेकर उत्तरा और बोला-" कुछ वर्ष यही बिता इस हा-हा-हूस धरती पर। आगे देखा जाएगा तेरा क्या होता है।" 

मिस्टर एस की मृत्यु?!

 मिस्टर एस अब कठघरे में था।
वह किसी सोंच में था?!
अब से लाखों वर्ष पूर्व-
उन दिनों तृण बिंदु के आश्रम में एक आचार्य था,जिसका नाम था-'कुटु-अम्ब'।
वह छब्बीस साल में लग गया था। उस समय एक यक्षिणी थी-दृणी।जो कि यक्षणी -
ताड़का की  सहचारिणी थी। अयोध्या में उस वक्त राजा दशरथ के यहां श्रीरामचन्द्र का जन्म हो चुका था जो लगभग सात वर्ष के रहे होंगे।
जब कोई आत्मा गर्भ धारण करती है तो एक योजना व अपने पूर्व संस्कारों, पूर्व कर्मों आदि के प्रभाव में आकर। लंका साम्राज्य के अंत के लिए छोटी छोटी घटनाओं के माध्यम से बड़े मिशन की तैयारियो को अंजाम दिया जा रहा था।
रावण का नाम सोमाली/सोम अली  का वन्य समाज में पूरी धरती पर प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष प्रभाव रहता था।

जहां आज सोमालिया है, वहाँ उसका कभी गढ़ रहा था-उत्तर अफ्रीका की ओर व द्वारिका आदि तक, बिंदु सरोबर तक भी।

ताड़का एक गुफा में बैठी सोंच रही थी-" आचार्य कुटुंब से एक बार हमारा सामना हुआ था। हमारी विभीषणता से वह विचलित नहीं हुआ था । वह बोला था हम आपके सामने नतमस्तक होते हैं क्योंकि आपके अंदर भी आत्मा दिव्य शक्तियां हैं। हमारा आपका स्तर अलग-अलग है,बस ।प्रकृति और ब्रह्म अंश से आप भी हैं और मैं भी और सभी जीव जंतु भी।  हम पुनः आपके सामने आपके अंदर की दिव्य शक्तियों को नमन करते हैं, जो जगत का भी कल्याण कर सकती हैं ,यदि आप चाहें तो । हम में आप में कोई अंतर नहीं है। अंतर सब स्तर का है ,अपना-अपना है स्तर।"
हूँ! 
मिस्टर बैचैनी में कठघरे के अंदर ही टहलने लगा था।
"हूँ, अब जेल में सड़ कर क्या मनसूबे पूरे होंगे?"




हूँ, मानव समाज व तन्त्र हर देश व धरती भर का बिगड़ चुका है।ऐसे में इन एलियन्स का इस्तेमाल भी इस धरती का मानव गलत ही करेगा।धरती व प्रकृति को ऋषि परम्परा के लोग चाहिए जोकि 'बसुधैब कुटुम्बकम की भावना व 'सागर में कुम्भ कुम्भ में सागर'- की भावना रखते हैं।हमें चिंता इन एलियन्स को लेकर। अंतरिक्ष वैज्ञानिकों की रिपोर्ट्स तो अंडर वर्ल्ड के प्रकृति व ब्रह्मांड विरोधी मंसूबों की ओर संकेत करती है।"
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एलियन्स का आक्रमण?!

 एलियन्स आक्रमण ?!

हम सोंच रहे थे-भविष्य में एलियन्स पृथु महि पर आक्रमण करेंगे।

उधर अंतरिक्ष मे एक धरती 'हा- हा- हूस'- जहाँ विशालकाय जंतु!! मिस्टर एस की पुत्री -'रुचिको'को वहीं छोंड़ दिया गया था।

एक विशालकाय डायनासोर!

वह चलता तो लगता कि सारी धरती कांप रही हो।

'ह ह न स र क'-एक पहाड़ी की आड़ ले खड़ा हो जाता है।

कुछ समय पश्चात डायनासोर तो आगे बढ़ जाता है लेकिन ' ह ह न स र क'- दो फन वाले एक सांप का शिकार हो जाता है। सांप उसके बांये पैर से लिपट गया था।काफी प्रयत्न के बाद उस दो मुहे वाले साँप से उसने पीछा छुड़ाया और आगे बढ़ गया।


और--

मिस्टर एस की पुत्री-रुचिको सस्कनपल को अपनी ओर आते देख कर सहमी सहमी एक वृक्ष तले झाड़ी में दुबक जाती है।लेकिन-

सस्कनपल उस झाड़ी के समीप ही आ चुका था।

उस झाड़ी में दो मुहे सांप की फुसकार पर रुचिको डर कर खड़ी हो जाती है।
तो सस्कनपल उसे देख मुस्कुरा देता है।और.....



किसी धरती पर एक कमरे में महात्मा गांधी शक्ल एक बुजुर्ग व्यक्ति टहल रहा था।

वह-
"इन महान वैज्ञानिकों ने पृथु महि के महात्मा गांधी का क्लोन अर्थात हमें बना कर सफलता तो पा ली है, लेकिन....!? हमारा नाम दिया गया है- ब्रह्मांड बी.गांधी।"


आगे जा कर वह एक दीवार की ओर देखता है।वह दीवार एक स्क्रीन में बदल कर चलचित्र  दिखाने लगती है।

"पृथु महि व उसके सौर परिवार, उसके मंदाकिनी की स्थिति बड़ी भयावह हो गयी है।मंगल ग्रह की तरह क्या अब पृथु महि का मानव भी अब खत्म हो जाएगा। वह मानव भी बड़ा बनता था?हूँ, स्वयं ही सभी प्राणियों में सर्वश्रष्ठ?लेकिन उसने पृथुमहि ही नहीं सारे अंतरिक्ष के हालात मुश्किल कर दिए?वह भूल गया कि प्रकृति अभियान से बढ़ कर कुछ भी नहीं।जैविक क्रमिक विकास में मानव ही सर्वश्रेष्ठ कृति नहीं है अभी।ये जैविक क्रमिक विकास तो अनन्त है।अभी अनेक स्तर दर स्तर क्रमिक प्राणी आयंगे जो हर पूर्व मानव से श्रेष्ठ होंगे। हूँ, अनेक धरतियों  के प्राणी जो पृथु महि के मानव से बेहतर तकनीकी में है नाराज हैं।इस कारण वे पृथुमहि के मानवों पर आक्रमण भी करने वाले हैं।"



'सर जी'- कहते रहे हैं कि धरती पर सबसे बड़ी समस्या है-वह प्राणी जो मानव कहा जाता है लेकिन उसमें मानवता नहीं है।और सबसे बड़ा भृष्टाचार है शिक्षा।क्योकि कोई भी शिक्षित का आचरण,विचार व भाव ज्ञान के आधार पर नही है।

हूँ.....


उन दिनों हम शिशु क या शिशु ख में विद्यार्थी थे। एक महात्मा अपने आवास स्थल पर प्राइमरी स्तर का विद्यालय चला रहे थे।हमारा वहीं पढ़ने के लिए आना जाना था।कायस्थ जाति के बच्चों के हमारी दोस्ती होगयी थी। बात सन 1978-79ई0 की रही होगी। उन दिनों मई- जून की छुट्टियों में खजुरिया नवीराम(भीकमपुर),बिलसंडा आना जाना होता था।अपने पैतृक गांव का आता पता अहसास न था।

उन दिनों शान्ति कुंज, आर्य समाज में पिताजी की सक्रियता काफी ज्यादा थी।


खजुरिया नवीराम की स्थापना कुनबी  मराठा ठाकुरों ने की थी।जो अब कुर्मी गिने जाते हैं।जिनके हजारों गांव पूरे के पूरे उत्तर भारत के तराई में बस गए थे।ये भी सुना जाता है कि सन1761ई0 के मराठा व अब्दाली युद्ध में अनेक भारतीय शक्तियों की मदद न मिलने या तटस्थता या गद्दारी के कारण कुनबी मराठा पराजित हुए थे।वे इतने स्वभिमानी होने व देश की विभक्त राजनीति से परेशान होकर यहां के जंगलों में बस गए थे।जिन्हें अंग्रजों ने खेत जोतने ,कृषि करने की स्वतंत्रता दे दी थी। बताते है इनके पूर्वज अयोध्या में क्षत्रिय थे।जिन्हें विभिन्न परिस्थितियों  के कारण दक्षिण व अन्य क्षेत्रों में जाकर बसना लड़ा था।कोलार, कर्णकट आदि क्षेत्र में अपना राज्य स्थापित किया था।जिनके पूर्वज चोल वंश, गंग वंश में भी प्रतिष्ठित हुए थे।ददिगी जिनका प्रमुख नेता था।विजय नगर साम्राज्य में भी इनका योगदान था।विजयनगर के राजपुरोहित, सेनापति व सर्वप्रथम वेद भाष्यकार #सायण ने तक कहा था कि कूर्मि सर्वशक्तिमान होता है।ये लोग वर्मा या वर्मन उपाधि भी लगाने लगे थे। खजुरिया नवीराम में पिता जी की ननिहाल थी। सुना जाता है कि नवीराम  कुनबियों के एक प्रतिष्ठित व्यक्ति थे।एक समय पूरे तराई क्षेत्र में इनकी तूती बोलती थी।

जून की छुट्टियां चल रही थीं।
हम खजुरिया नवीराम में उपस्थित थे।

उन दिनों बादलों में विभिन्न आकृतियां खोजना शौक था।




कुनबियों के द्वारा बने क्षेत्र में प्रसिद्ध मंदिर  के सामने हम हम बैठे फूट खा रहे थे। कुछ दूरी पर सामने खेत में कुछ लोग घास साफ कर रहे थे।  हम बार बार ऊपर आसमान की ओर देखने लगते थे, जैसे कोई आफत आसमान से टपकने वाली हो। कल शाम को मकान के सामने नीम के वृक्ष के नीचे कुछ व्यक्ति चर्चा कर रहे थे कि आसमान से आकर पत्थर नीचे धरती पर आकर गिरते हैं।जिन्हें धूमकेतु कहते है।सुना जाता है आसमान में और भी ऐसी धरतियाँ रहती हैं, जहां नागवंशी, मत्स्य वंशी रहते है। ब्रह्मा, विष्णु, महेश के लोग रहते हैं।



ब्रह्मांड बी.गांधी बॉल स्क्रीन पर अंतरिक्ष के चल चित्र देख रहा था।


"एलियन्स पृथु महि पर आक्रमण कर सकते है।वे पृथुमहि के मानवीय तन्त्र से काफी खफा है। चलो ठीक है, इस बहाने पृथु महि के मानव जाति,मजहब, देश की भावना से उपर उठ कर 'विश्व सरकार'- की भावना  से जुड़ेंगे, विश्व बंधुत्व, बसुधैव कुटुम्बकम भावना की ओर बढ़ेंगे।"


"यदि1947 में देश के बटवारा के बाद सारे मुसलमान पाकिस्तान चले भी जाते देश के बंटबारे के उद्देश्य के मुताबिक तो फिर हिंदुस्तान में क्या होता?विधाता जो करवाता है ठीक ही करवाता है।गांधी ने ठीक ही कहा था कि देश के लिए मुसलमानों का हिंदुस्तान में रुकना गलत न होगा।इसी तरह पृथु महि पर एलियन्स आक्रमण...?!"


रचनाकार परिचय::अशोकबिन्दु

पूरा नाम ::अशोक कुमार वर्मा 'बिंदु'
जन्म तिथि::02 अक्टूबर 1973
                (कागज पर 15 अक्टूबर 1973)
पिता::श्री प्रेम राज वर्मा
माता::श्री मती छात्रा देवी
जन्मस्थान::ददियुरी(दद उड़ी),बंडा, शाहजहांपुर, उप्र।
ननिहाल::मोहिउद्दीनपुर, बंडा, शाहजहांपुर,उप्र।
वर्तमान निबास::कबीरा पुण्य सदन, कटरा, शाहजहांपुर उप्र।
शैक्षिक योग्यता::
                       बीएड::1994,एस एस कालेज, शाहजहांपुर, उप्र।
                       एम ए ::1996,अर्थशास्त्र, स्नातकोत्तर महाविद्यालय, बीसलपुर, पीलीभीत, उप्र।
                       एम ए::2000,समाजशास्त्र, बरेली कालेज, बरेली, उप्र।
                       एम ए::2009,हिंदी, बरेली कालेज, बरेली, उप्र।
                        एम ए::2021,इतिहास, एस एस कालेज, शाहजहांपुर, उप्र।

सम्पादन::स्पर्श पत्रिका, मर्म युग पत्रिका आदि
शिक्षण कार्य ::मखानी इंटर कालेज, मुड़िया अहमदनगर, बरेली, उप्र।
                    ::आदर्श बाल विद्यालय इंटर कालेज, मीरानपुर कटरा, शाहजहांपुर, उप्र।

रुचि::लेखन, बागवानी, आध्यत्म, स्वाध्याय आदि।

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12 Comments

kashish

11-Mar-2023 02:18 PM

nice

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Fauzi kashaf

02-Dec-2021 11:21 AM

Good

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Zaifi khan

01-Dec-2021 09:17 AM

Very nice

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